Friday, February 24, 2017

52 - खंगारोत कछवाह

खंगारोत कछवाह 
(कछवाहोँ की बारह कोटङी मेँ शामिल है)
राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह - शाखा - खंगारोत कछवाह

खंगारोत कछवाह - राव खंगार जी के वंशज खंगारोत कछवाह कहलाते है। जगमालजी के पुत्र और राजा प्रथ्वीराज सिँह [प्रथम] के पोते, राव खंगार जी की 24 पत्त्नीयों से उतपन संतानें खंगारोत कछवाह कहलाते है। खंगारोत कछवाह, कछवाहोँ की बारह कोटङी मेँ शामिल है।
राव खंगार जी के 24 पत्त्नीयां थी जिन में से उन्नीस का ब्यौरा मिलता है जो इस प्रकार है-
01 - पहली शादी [जोधीजी] रानी सुजान कंवर, से जो मारवाड़ के राव नेमा की बेटी और के राव किशनजी की पोती थी ।
02 - दूसरी शादी [मेड़तणीजी] रानी कल्याण कंवर, से जो मेड़ता के राव वीरमदेव की बेटी थी ।
03 - तीसरी शादी [रडमलोतजी] रानी लाड कंवर,से जो रडमलोत ठाकुर साईंदास की बेटी थी ।
04 - चौथी शादी [मंडलावतीजी] रानी आनंद कंवर,से जो बीकानेर में सारूण्डा के ठाकुर संग्राम सिंह की बेटी थी ।
05 - पंचवीं शादी [राठौङीजी] रानी फैफकंवर, से जो ठाकुर राम सिंह बुटका [Buatka ] की बेटी थी ।
06 - छटवीं शादी [चौहानीजी] रानी बोरांगड़े राव बालकरण की बेटी थी ।
07 - सातवीं शादी [चौहानजी] रानी रंगदेकँवर ,जो ददेख [Dadekha ] के राव केसरी सिंह की बेटी थी ।
08 - आठवीं शादी की, [चौहानजी] रानी नौरंगदे से, जो बूड़सू [Budsu ] के ठाकुर बिहारीदास की बेटी थी ।
09 - नोवीं शादी की, [चौहानजी] रानी केसरदेकँवर से, जो चितावा [Chitawa ] के ठाकुर मानसिंहकी बेटी थी ।
10 - दसवीं शादी [चौहानजी] रानी गुमानकंवर, से जो मकराना के ठाकुर भोजराज की बेटी थी ।
11 -ग्यारवीं शादी [सोलंकीजी] रानी राजकंवार, से नगर नैनवा [Nagar Nainwa ] के राव बदनसिंह की बेटी थी ।
12 - बारहवीं शादी [चौहानजी] रानी सौभागदेकँवर,से जो ठिकाना सेवा [Sewa] ठिकाने केठाकुर करणसिंह की बेटी थी।
13 - तेरहवीं शादी [सौलंकीजी] रानी बीजकंवर, के साथ जो गांवड़ी [Ganvdi] के ठाकुर करण सिंह की पुत्री थी।
14 - चौहदवीं शादी [सौलंकीजी] रानी चंद्रकंवर के साथ, जो टोडारायसिंह [Todaraisingh] ठिकाने के राव राज सिंह की बेटी थी।
15 पन्द्रवीं शादी [सौलंकीजी] रानी रामकंवर के साथ, जो रूपनगर के राव रामचंदकी बेटी थी।
16 सोलहवीं शादी [तंवराणीजी] रानी लाडकंवर के साथ, जो ठाकुर राव पहाडसिंह की बेटी बेटी थी।
17 सतरहवीं शादी [तंवराणीजी] रानी झूमकंवर के साथ, जो बागोली [बागोली] के राव सेसमल की बेटी थी।
18 अठारहवीं शादी [तंवराणीजी] रानी गुलाबकंवर से ,जो ठाकुर वुधसिंह की बेटी थी।
19, उन्नीसवीं शादी [चौहानजी] रानी लाडकंवर, से जो निरवान [Nirwan]ठाकुर मान सिंह की बेटीथी।
इन पंद्रह गांवों या जागीरों में 
राव खंगार जी के वंसज निवास करते हैं:-   
राव खंगार जी के 24 पत्नियों से सोलह पुत्र थे, एक पुत्र की म्रत्यु बहुत ही छोटी उम्र में हो गयी थी, जिसका किसी प्रकार का कोई वंस नहीं चला बाकि बचे पंद्रह पुत्र इस प्रकार थे -:
01 - राघोदास [राघवदास ] - राघोदास को ‘धाना’ [Dhana] जागीर मिली थी ।
02 - बैरीसाल - बैरीसाल को ‘गुढा’ [Gudha] जागीर मिली थी।
03 - नारायणदास - नारायणदास को नरैना [Naraina] जागीर मिली थी।
04 - किसनदास - किसनदास को टूडेड [Tuded or Tuder] जागीर मिली थी।
05 - मनोहरदास [जोबनेर [jobner ] और नरैना [Naraina]जागीर मिली थी।
06 - अमरसिंह - अमरसिंह को पनव[Panaw] जागीर मिली थी।
07 - केशोदास - केशोदास को मोरङ [Morad] जागीर मिली थी।
08 - भाकरसिंह - भाकरसिंह खंगारजी का आठवां पुत्र था , भाकरसिंह को सांखू [SAKHOON] ठिकाना गांव सांखूफोर्ट, तहसील सादुलपुर, जिला चूरू (राजस्थान)] जागीर मिली थी। भाखरसिंह ने दस शादीया की और आठ पुत्र हुए, भाखरसिंह की म्रत्यु 1633 मेँ हुयी। भाखरसिंह का पुत्र हुवा द्वारकादास, द्वारकादास का पुत्र अजबसिंह हुवा, अजबसिंह के दो पुत्र हुए हरिसिंह, और बीजलसिंह।
09 - बाघसिंह - बाघसिंह को (कालख) [Kalakh] जागीर मिली थी।
10 - बुधसिंह
11 - हम्मीरसिंह - हम्मीरसिंह को बघोली [Bagholi] जागीर मिली थी।
12 - गोविन्ददास
13 - तिलोकसिंह - तिलोकसिंह को कामा [Kama] जागीर मिली थी।
14 - बिहारीदास
15 - सबलसिंह - सबलसिंह को सिलावट [Silawat] जागीर मिली थी।
इन गांवों और जागीरों के ठाकुर राव खंगारजी के वंसज बताए जाते हैं-:
दूदू [Dudu]
हरसोली [Harsoli]
दिग्गी [Diggi ]
लाम्बिया [Lambia ]
बचूं [Bachun ]
बिचून [Bichoon ]
बोराज [Boraj ]
जाड़ावत [Jadawata ]
बांसखोह [Banskhoh ]
सवर्दा [Sawarda ]
मंद [Manda]
अटौली [Atoli ]
पलरी [Palri ]
झाड़ोली [Jhadoli ]
मेहंदवास [Mehndwas ]
राव खंगार जी के वंशज खंगारोत कछवाह कहलाते है। जगमालजी के पुत्र और राजा प्रथ्वीराज सिँह [प्रथम] के पोते, राव खंगार जी की 24 पत्त्नीयों से उतपन संतानें खंगारोत कछवाह कहलाते है। खंगारोत कछवाह, कछवाहोँ की बारह कोटङी मेँ शामिल है।

खंगारोत कछवाहोँ का पीढी क्रम इस प्रकार है - :
खंगार जी – जगमाल जी - प्रथ्वीराज सिँह (प्रिथीराज) - चन्द्रसेन - राव उधा जी (उदरावजी,उधरावजी) - बनवीर जी (वणवीर) - नाहरसिंहदेव जी - उदयकरण जी - जुणसी जी (जुणसी, जानसी, जुणसीदेव जी, जसीदेव) - जी - कुन्तलदेव जी – किलहन देवजी (कील्हणदेव,खिलन्देव) - राज देवजी - राव बयालजी (बालोजी) - मलैसी देव - पुजना देव (पाजून, पज्जूणा) – जान्ददेव - हुन देव - कांकल देव - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढ देव (सोरा सिंह) - इश्वरदास (ईशदेव जी)
ख्यात अनुसार खंगारोत कछवाहोँ का पीढी क्रम ईस प्रकार है –

01 -भगवान श्री राम - भगवान श्री राम के बाद कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश का इतिहास इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ। भगवान श्री राम के दो पुत्र थे – 
         01 - लव
         02 - कुश 

रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है। - लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लाहौर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
02 – कुश - भगवान श्री राम के पुत्र लव, कुश हुये।
03 - अतिथि - कुश के पुत्र अतिथि हुये।
04 - वीरसेन (निषध) - वीरसेन जो कि निषध देश के एक राजा थे। भारशिव राजाओं में वीरसेन सबसे प्रसिद्ध राजा था। कुषाणों को परास्त करके अश्वमेध यज्ञों का सम्पादन उसी ने किया था। ध्रुवसंधि की 2 रानियाँ थीं। पहली पत्नी महारानी मनोरमा कलिंग के राजा वीरसेन की पुत्री थी । वीरसेन (निषध) के एक पुत्री व दो पुत्र हुए थे:-
          01- मदनसेन (मदनादित्य) – (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) सुकेत के 22 वेँ शासक राजा मदनसेन ने बल्ह के लोहारा नामक स्थान मे सुकेत की राजधानी स्थापित की। राजा मदनसेन के पुत्र हुए कमसेन जिनके नाम पर कामाख्या नगरी का नाम कामावती पुरी रखा गया।
          02 - राजा नल - (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) निषध देश पुराणानुसार एक देश का प्राचीन नाम जो विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित था।
          03 - मनोरमा (पुत्री) - अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती । मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और लीलावती के शत्रुजित ।माठर वंश के बाद कलिंग में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया था। माठर वंश के बाद500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। वर्तमान उड़ीसा राज्य को प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य , कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि भी नामों से जाना जाता था। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह वंश, मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया।
05 - राजा नल - (राजा वीरसेन का पुत्र राजा नल) निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र, राजा नल का विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के साथ हुआ था। नल-दमयंती - विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन के पुत्र नल राजा नल स्वयं इक्ष्वाकु वंशीय थे। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) जिसे मौर्य काल में स्वतंत्र आटविक जनपद क्षेत्र कहा गया इसे समकालीन कतिपय ग्रंथों में महावन भी उल्लेखित किया गया है। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र में अनेक नाम नल से जुडे हुए हैं जैसे - नलमपल्ली, नलगोंडा, नलवाड़, नलपावण्ड, नड़पल्ली, नीलवाया, नेलाकांकेर, नेलचेर, नेलसागर आदि।महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र पर नलवंश के राजा व्याघ्रराज (350-400 ई.) की सत्ता का उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशास्ति से मिलता है। व्याघ्रराज के बाद, व्याघ्रराज के पुत्र वाराहराज (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। वाराहराज का शासनकाल वाकाटकों से जूझता हुआ ही गुजरा। राजा नरेन्द्र सेन ने उन्हें अपनी तलवार को म्यान में रखने के कम ही मौके दिये। वाकाटकों ने इसी दौरान नलों पर एक बड़ी विजय हासिल करते हुए महाकांतार का कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया था। वाराहराज के बाद, वाराहराज के पुत्र भवदत्त वर्मन (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। भवदत्त वर्मन के देहावसान के बाद के पश्चात उसका पुत्र अर्थपति भट्टारक (460-475 ई.) राजसिंहासन पर बैठे। अर्थपति की मृत्यु के पश्चात नलों को कडे संघर्ष से गुजरना पडा जिसकी कमान संभाली उनके भाई स्कंदवर्मन (475-500 ई.) नें जिसे विरासत में सियासत प्राप्त हुई थी। इस समय तक नलों की स्थिति क्षीण होने लगी थी जिसका लाभ उठाते हुए वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन नें पुन: महाकांतार क्षेत्र के बडे हिस्सों पर पाँव जमा लिये। नरेन्द्र सेन के पश्चात उसके पुत्र पृथ्वीषेण द्वितीय (460-480 ई.) नें भी नलों के साथ संघर्ष जारी रखा। अर्थपति भटटारक को नन्दिवर्धन छोडना पडा तथा वह नलों की पुरानी राजधानी पुष्करी लौट आया। स्कंदवर्मन ने शक्ति संचय किया तथा तत्कालीन वाकाटक शासक पृथ्वीषेण द्वितीय को परास्त कर नल शासन में पुन: प्राण प्रतिष्ठा की। स्कंदवर्मन ने नष्ट पुष्करी नगर को पुन: बसाया अल्पकाल में ही जो शक्ति व सामर्थ स्कन्दवर्मन नें एकत्रित कर लिया था उसने वाकाटकों के अस्तित्व को ही लगभग मिटा कर रख दिया । के बाद नल शासन व्यवस्था के आधीन कई माण्डलिक राजा थे। उनके पुत्र पृथ्वीव्याघ्र (740-765 ई.) नें राज्य विस्तार करते हुए नेल्लोर क्षेत्र के तटीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। यह उल्लेख मिलता है कि उन्होंनें अपने समय में अश्वमेध यज्ञ भी किया। पृथ्वीव्याघ्र के पश्चात के शासक कौन थे इस पर अभी इतिहास का मौन नहीं टूट सका है। नल-दम्यंति के पुत्र-पुत्री इन्द्रसेना व इन्द्रसेन थे।

ब्रह्माजी की 71वीँ पिढी मेँ जन्में राजा नल से इतिहास में प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी राजपूतों की एक अलग शाखा चली जो कछवाह के नाम से विख्यात है ।
06 – ढोला - राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था। जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है ।
07 – लक्ष्मण - ढोला के लक्ष्मण नामक पुत्र हुआ।
08 - भानु - लक्ष्मण के भानु नामक पुत्र हुआ।
09 – बज्रदामा - भानु के बज्रदामा नामक पुत्र हुआ, भानु के पुत्र परम प्रतापी महाराजा धिराज बज्र्दामा हुवा जिस ने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया।
10 - मंगल राज - बज्रदामा के मंगल राज नामक पुत्र हुआ। बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के मंगल राज के 2 पुत्र हुए:-
          01 - किर्तिराज (बड़ा पुत्र) - किर्तिराज को ग्वालियर का राज्य मिला था।
          02 - सुमित्र (छोटा पुत्र) - सुमित्र को नरवर का राज्य मिला था। नरवार किला, शिवपुरी के बाहरी इलाके में शहर से 42 किमी. की दूरी पर स्थित है जो काली नदी के पूर्व में स्थित है। नरवर शहर का ऐतिहासिक महत्व भी है और इसे 12 वीं सदी तक नालापुरा के नाम से जाना जाता था। इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं। इस नरवर राज्य को ‘निषाद राज्य भी कहते थे, जहां राजा वीरसेन का शासन था। उनके ही पुत्र का नाम राजा नल था। राजा नल का विवाह दमयंती से हुआ था। बाद में चौपड़ के खेल में राजा नल ने अपनी सत्ता को ही दांव पर लगा दिया था और सब कुछ हार गए। इसके बाद उन्हें अपना राज्य छोड़कर निषाद देश से जाना पड़ा था। 12वीं शताब्दी के बाद नरवर पर क्रमश: कछवाहा, परिहार और तोमर राजपूतों का अधिकार रहा, जिसके बाद 16वीं शताब्दी में मुग़लों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। मानसिंह तोमर (1486-1516 ई.) और मृगनयनी की प्रसिद्ध प्रेम कथा से नरवर का सम्बन्ध बताया जाता है।

11 - सुमित्र - मंगल राज का छोटा पुत्र सुमित्र था।
12 - ईशदेव जी - सुमित्र के ईशदेव नामक पुत्र हुआ। इश्वरदास (ईशदेव जी) 966 – 1006 ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के शासक थे।13 - सोढदेव - इश्वरदास (ईशदेव जी) के सोढ देव (सोरा सिंह) नामक पुत्र हुआ
14 - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढदेव जी के दुलहराय जी (ढोलाराय) नामक पुत्र हुआ । दुलहराय जी (ढोलाराय) (1006-36) आमेर (जयपुर) के शासक थे। दुलहराय जी (ढोलाराय) के 3 पुत्र हुये:-
          01 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
          02 - डेलण जी
          03 - वीकलदेव जी 
15 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे। कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) के पांच पुत्र हुए:-
          01 - अलघराय जी
          02 - गेलन जी
          03 - रालण जी
          04 - डेलण जी
          05 - हुन देव 
16 - हुन देव - कांकल देव (काँखल देव) के हुन देव नामक पुत्र हुआ।
हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
17 - जान्ददेव - हुन देव के जान्ददेव नामक पुत्र हुआ। जान्ददेव (1053 – 1070) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
18 – पंञ्जावन - जान्ददेव के पंञ्जावन (पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) नामक पुत्र हुआ।पंञ्जावन (पुजना देव,पाजून, पज्जूणा) (1070 – 1084) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
19 - मलैसी देव - राजा मलैसिंह देव पंञ्जावन (पुंजदेव, पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) का पुत्र था, तथा मलैसिंह दौसा का सातवाँ राजा था मलैसी देव दौसा के बाद राजा मलैसिंह देव 1084 से 1146 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। भारतीय ईतीहास में मलैसी को मलैसी, मलैसीजी, मलैसिंहजी आदी नामों से भी जाना एंव पहचाना जाता है, मगर इन का असली नाम मलैसी देव था। जैसा कि सभी को मालुम है सुंन्दरता के वंश में होकर (मलैसीजी मलैसिंहजी) ने बहुतसी शादीयाँ करी थी। जिन में राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में करी थी इन सब की जानकारी बही भाटों की बही एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान तो खुलकर बताती है मगर इतिहास के पन्ने इस विषय पर मौन हैं।
मलैसी देव के बहुत से पुत्र थे मगर हमें इनमें से सात का तो हर जगह ब्योरा मिल जाता है बाकी पर इतीहास अपनी चुपी नहीं तोड़ता है । मगर हम जागा और जातीगत ईतीहास लिखने वाले बही-भीटों की बही के प्रमाण एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान पर जायें तो पता चलता है राजा मलैसी देव कि सन्तानोँ मेँ शुद् रजपुती खुन दो पुत्रोँ मेँ था राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी में। राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी के अलावा बकी पाँच ने कसी कारण वंश दूसरी जाती की लड़की से शादी की जीससे एक अलग- अलग जातीयाँ निकली। मलैसी देव ने राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में शादीयाँ करी थी इन सब अन्य जातीयों से पुत्र -:
          01 - तोलाजी - टाक दर्जी छींपा
          02 - बाघाजी - रावत बनिया
          03 - भाण जी - डाई गुजर
          04 - नरसी जी - निठारवाल जाट
          05 - रतना जी - सोली सुनार,आमेरा नाई
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से एक अलग जाती बनगयी है
          06 - जैतलजी (जीतलजी) - जैतलजी (जीतल जी) (1146 – 1179) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
          07 - राव बयालदेव 
20 - राव बयालदेव - राजा मलैसिंह देव के पुत्र राव बयालदेव ।
21 - राज देवजी - राव बयालदेव के पुत्र राज देवजी। राज देवजी (1179 – 1216) आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा राव बयालजी (बालोजी) का पुत्र राजा देव जी दौसा का नौँवा राजा बना जिसका कार्यकाल 1179-1216 तक। राजा देव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
          01 - बीजलदेव जी
          02 - किलहनदेव जी
          03 - साँवतसिँह जी
          05 - सिहा जी
          06 - बिकसी [ बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी ]
          07 - पाला जी (पिला जी)
          08 - भोजराज जी
          09 - राजघरजी [राढरजी]
          10 - दशरथ जी
          11 - राजा कुन्तलदेव जी 

22 - कुन्तलदेव जी - कुन्तलदेव जी 1276 से 1317 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा कुन्तलदेव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
          01 - बधावा जी
          02 - हमीर जी (हम्मीर देव जी)
          03 - नापा जी
          04 - मेहपा जी
          05 - सरवन जी
          06 - ट्यूनगया जी
          07 - सूजा जी
          08 - भडासी जी
          09 - जीतमल जी
          10 - खींवराज जी
          11 - जोणसी 

23 - जोणसी - राजा जोणसी कुन्तलदेव जी के पुत्र थे, इन को को जुणसी जी, जुणसी, जानसी, जुणसी देव जी, जसीदेव आदि कई नामों से पुकारा जाता था, आमेर के 13 वें शासक राजा जुणसी देव के चार पुत्र थे -:
          01 - जसकरण जी
          02 - उदयकरण जी
          03 - कुम्भा जी
          04 - सिंघा जी 

24 - उदयकरण जी [उदयकर्ण] - उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे। राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है। राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी। उदयकरजी के आठ पुत्र थे :-
          01 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी]
          02 - राव बरसिंह
          03 - राव बालाजी
          04 - राव शिवब्रह्म
          05 - राव पातालजी
          06 - राव पीपाजी
          07 - राव पीथलजी
          08 - राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र) 

25 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी] - राव नारोसिंह - [गांव वाटका, जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ] आमेर के तीसरे राजा उदयकरणजी के बड़े पुत्र नाहरसिंह देवजी थे, राजा नरसिंह देवजी, आमेर के चौथे राजा थे जिनका शासनकाल 1388 से 1413 तक रहा है। राजा नाहरसिंह देवजी की म्रत्यु 1413 में हुयी थी।
26 - बनबीरसिंह - राजा राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी] का पुत्र हुवा राजा बनबीरसिंह, राजा बनबीरसिंह आमेर का पांचवां राजा बना जिनका शासनकाल 1413 से 1424 तक रहा है। राजा नाहरसिंह देवजी की म्रत्यु 1424 में हुयी थी। राजा बनवीरजी के वंशज बनवीरपोता (वणवीरपोता) कछवाह कहलाते हैं । राजा बनवीरजी के छह पुत्र थे :-
राजा बनवीरजी के पुत्र बरेजी के वंसज बरेपोता कछवा कहलाते हैं।
राजा बनवीरजी के पुत्र बिरमजी के वंसज बिरमपोता कछवाह कहलाते हैं।
राजा बनवीरजी के पुत्र मेंगलजी के वंसज मेंगलपोता कछवाह कछवाह कहलाते हैं ।
          01 - हरजी - हरजी के वंसज हरजी का कछवाह कहलाते हैं। मगर हरजी के पोते बनवीरपोता (वणवीरपोता) कछवाह कहलातें हैं क्यों की वे बाद आकर नारुजी के वंसजों के साथ रहने लगे थे।
          02 - बरेजी - बरेजी के वंसज बरेपोता कछवा कहलाते हैं।
          03 - बीरमजी - बिरमजी के वंसज बिरमपोता कछवाह कहलाते हैं।
          04 - मेंगलजी - मेंगलजी के वंसज मेंगलपोता कछवाह कछवाह कहलाते हैं ।
          05 - राव नारुजी - [नरोजी उर्फ नाराजी, नारोसिंह, नारूसिंह] राव नारुजी गांव वाटका में रहने के कारण इनको वाटका आ वतकजी भी कहा जाता था।[नारूसिंह राव नारोसिंह के वंसज कछवाहोँ की बारह कोटङी मेँ शामिल हैं।
          06 - उधाराव
वाटका गाँव - [राजस्थान राज्य के जयपुर जिले की चाकसू तहसील में है, राव नारो वाटका गाँव व बनिरपोता ठाकुरो के पहले मुख्या थे। राव नारो के छह पीढ़ी बाद सातवी पीढ़ी में वाटका गाँव के ठाकुर बने भैरूसिंह , भैरूसिंह के एक लड़की का जनम हुवा बृजकंवर, जिसकी शादी पीलवा गाँव [ प्राचीन राज्य जोधपुर (फलोदी परगना )] के ठाकुर जीवराजसिंह के पुत्र ठाकुर फतेहसिंह चम्पावत के साथ हुयी , फतेहसिंह चम्पावत ठिकाना नैला [Naila] संस्थापक भी थे।]
27- राजा उधाराव - राव राजा उधाराव आमेर के छटे राजा थे जिनका शासनकाल 1424 से 1453 तक था राव राजा उधाराव की म्रत्यु 1453 इन हुयी थी।
28- राजा चन्द्रसेन - राव राजा उधाराव का पुत्र हुवा राजा चन्द्रसेन। राजा चन्द्रसेन आमेर के सातवें राजा थे। जिनका शासनकाल 1453 से 1502 और 1467 व 1502 तक था।
राजा चन्द्रसेन की मार्च 1502 इन हुयी थी। राजा चन्द्रसेन के दो पुत्र हुए :-
          01 - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम]
          02 - राव कुम्भाजी - राव कुम्भाजी के वंशज कुंम्भावत कछवाह कहलाते है ।
[कृपया ध्यान दें- कुम्हार जाति [माटी के बरतन बनाने वाले ] को "कुमावत" शब्द लिखने का अधिकार है, नकि "कुंम्भावत" शब्द लिखने का अधिकार नही है ।]
29 - पृथ्वीराजसिंह[प्रथम] - पृथ्वीराजसिंह[प्रथम] आमेर के आठवें राजा थे।जिनका शासनकल 1502 से 1527 तक रहा है , पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] आमेर की गद्दी पर 11 फरवरी 1503 को बैठे, पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की म्रत्यु 4 नवम्बर 1527 को हुयी थी।
पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की नो शादियां हुयी थी जिनमें -
          1] बीकानेर के तीसरे राव लुनकरणजी की पुत्रि बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर के साथ हुयी।
          2] महाराणामेवर के महाराणा राइमालसिंह की पुत्रि 
के साथ हुयी।
          3] राव ज्ञानसिंह गौड़ की पुत्रि सोहागकांवर  के साथ हुयी। 
इन तीन को ही पूर्ण पत्नी का दर्जा था बाकी छह रानियोँ को नहीं।
पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की नो रानियों से कुल अठारह पुत्र और तीन पुत्रियां हुए थे जिन में से पांच पुत्रों की म्रत्यु छोटी उम्र में ही हो गयी थी -
          01 - भीमसिंह - भीमसिंह का [जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,सबसे छोटा पुत्र ) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
          02 - पूरणमल - पूरणमल का [जन्म तंवर रानी की कोख से, दूसरा पुत्र] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की 1527 में म्रत्यु के बाद राजा पूरणमल का जन्म 5 नवम्बर 1527 को तंवर रानी की कोख से हुवा था। राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के दूसरे पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राजा पूरणमल आमेर के नवें राजा थे जिनका शासनकल 1527 से 1534 तक रहा है। राजा पूरणमल को निमेरा की जागीर मिली थी, राजा पूरणमल की शादी एक राठौड़ रानी से हुयी थी जिससे उत्पन संतानें पूरणमलोत कछवाह कहलाये जो कछवाह राजपरिवार की बारह कोटड़ी में सामिल है।
पूरनमल भारमल के ज्येष्ठ भाई थे, राजा पूरनमल, मुग़ल बादशाह हुमायूं के पक्ष में लड़ाई कर बयाना के किले पर अधिकार कराने में सहायता करते हुए 1534 में मंडरायल की लड़ाई में मारे गए। उसका सूरजमल या सूजासिंह नाम का बेटा था। लेकिन उस समय सूजासिंह [सुजामल] उम्र में बहुत छोटे थे ।
उसे राजा नहीं बनने दिया और पूरनमल के छोटे भाई भीम सिंह को आमेर का सिंहासन दे दिया गया। भीम सिंह के बाद उसके बेटे राजा रतन सिंह और बाद में सन 1548, में राजा भारमल को राजा बना दिया गया था। [वर्तमान में मंडरायल' (Mandrayal) राजस्थान (भारत,) राज्य के करौली जिले का एक क़स्बा है जो जयपुरसे 160 किमी दूर है]
          03 - भारमल जी ('बिहारीमल') - भारमल का [ जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,चौथा पुत्र ) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
          04 - सांगासिंह (सांगो) - सांगासिंह का (जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,पांचवा पुत्र जिसने सांगानेर बसाया) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
          05 - राव स्योसिंह - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
         06 - राव प्रतापसिंह - [राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। प्रतापसिंह के वंसज प्रतापपोता कछवाह कहलाये]
          07 - राव रामसिंह - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। [रामसिंह के वंसज रामसिंगहोत कछवाह कहलाये]
          08 - राव गोपालसिंह - राव गोपालसिंह का (जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव गोपालसिंह को चोमू और समोद जागीर मिली,राव गोपालसिंह की शादी करौली के ठाकुर की पुत्रि सत्यभामा के साथ हुयी थी।
          09 - रूपसिंह - रूपसिंह का [रूपसिंह का जन्म गोड़ रानी की कोख से हुवा था, रूपसिंह को दौसा की जागीर मिली थी। रूपसिंह के वंसज रुपसिंगहोत कछवाह कहलाये] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। रूपसिंह की म्रत्यु 4 नवम्बर 1562 को हुयी थी।
           11 - भीकाजी - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। [राव भीकाजी के वंसज भिकावत कछवाह कहलाये]
          12 - साईंदासजी - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव साईंदासजी के वंसज साईंदासोत कछवाह कहलाये]
          13 - जगमालजी - राव जगमालजी का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, छटे पुत्र] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव जगमालजी को दिग्गी और जोबनेर दो जागीर मिली थी, राव जगमालजी ने अपने पिता पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] से झगड़ा करके आमेर छिड़कर अमरकोट में रहने लगे, वंहाँ उन्होंने अमरकोट के राणा पहाड़सिंह की पुत्रि नेतकँवर से शादी करली। राव जगमालजी के पांच पुत्र हुए खंगारजी, सिंघदेवजी [सिंघदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ], सारंगदेवजी [सारंगदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ], जयसिंह'रामचंदजी राणा पहाड़सिंह की म्रत्यु 1549.में हुयी ।
          14 - पंचायणसिंह - पंचायणसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। पंचायणसिंह सामरिया ठिकाने के संस्थापक थे,पंचायणसिंह के वंसज पंचायणोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बढ़ कोटड़ी में सामिल है ।
          15 - बलभद्रसिंह - बलभद्रसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। अचरोल ठिकाने के संस्थापक बलभद्रसिंह थे । बलभद्रसिंह के वंसज बालभदरोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ।
          16 - सुरतानसिंह - सुरतानसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। सुरतानसिंह सुरौठ ठिकाने के संस्थापक थे । जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ।
          17 - चतुर्भुजसिंह - चतुर्भुजसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। चतुर्भुजसिंह बगरू ठिकाने के संस्थापक थे। चतुर्भुजसिंह के वंसज चतुर्भुजोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । ठाकुर चतुर्भुजसिंह के पुत्र हुवा कीरतसिंह जो चतुर्भुजसिंह के बाद बगरू के ठाकुर बने।
          18 - कल्याणदास - कल्याणदास का जन्म सिसोदिया रानी की कोख से हुवा था, आठवाँ पुत्र), राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। कल्याणदास को कालवाड़ जागीर मिली, कल्याणदास के वंसज कल्याणोत कछवाह कहलाये। जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । जिस में पदमपुरा , लोटवाड़ा और कालवाड़ आदि गांव सामिल है। कल्याणदास के तीन पुत्र हुए करमसिंह, मोहलदाससिंह, जगन्नाथसिंह
29 - जगमालजी - राव जगमालजी का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के छटे पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव जगमालजी को दिग्गी और जोबनेर दो जागीर (ठिकाना) मिली थी,
1. [डिग्गी - प्राचीन राज्य जयपुर और वर्तमान राज्य राजस्थान में जयपुर से करीब 75 किलोमीटर दूर टोंक जिले में स्थित डिग्गी में जगमालजी का शासन था]
2. [जोबनेर - प्राचीन राज्य जयपुर और वर्तमान राज्य राजस्थान में जयपुर से करीब 35 किलोमीटर दूर जयपुर जिले में स्थित एक शहर [नगरपालिका] है, यहां के जगमालजी पहले राव साहब थे ]
राव जगमालजी ने अपने पिता पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] से झगड़ा करके आमेर छिड़कर अमरकोट में रहने लगे, वंहाँ उन्होंने अमरकोट के परमार राजपूत (सोढा) राणा पहाड़सिंह की पुत्रि नेतकँवर से शादी करली। नेतकँवर को आसलदे या सोढीजी [सोढीरानी] के नाम से भी जाना जाता है । जगमालजी की म्रत्यु 1549 में हुयी थी ।
[वर्तमान में अमरकोट देश पाकिस्तान का एक जिला और नगर है, जो पाकिस्तान में स्थित है।अकबर की जन्मभूमि भी अमरकोट मानी जाती है। अमरकोट पहले सिंध की राजधानी थी। हुमायूँ के पुत्र अकबर का जन्म भी अमरकोट दुर्ग में 14 अक्टुबर 1542 को हुआ था।]
जगमालजी की नो शादियां हुयी थी -
1] - पहली शादी - अमरकोट के सोढा राजपूत, राणा पहाड़सिंह की पुत्रि नेतकँवर से, नेतकँवर को आसलदे या सोढीजी [सोढीरानी] के नाम से भी जाना जाता है।
2] - दूसरी शादी - कर्णोतिजी रानी चंद्रकंवर ,
3] - तीसरी शादी - जैसलमेर के रावल संग्रामसिंह की पुत्रि बरखावतीकँवर के साथ हुयी,
4] - चौथी शादी - पोखरण के ठाकुर खिंवकरण की पुत्रि बोरंगदे के साथ ,
5] - पांचवीं शादी - मेड़ता के राव दूदा की पुत्रि किशनावती [मेड़ती रानी ] के साथ
6] - छटवीं शादी - राव बलकरण की पुत्रि बोरंगदे [चौहानजी रानी] के साथ
7] - सातवीं शादी - गागरना [Gangraina ] के राव महेशदास की पुत्रि सदाकँवर [सोढ़ी रानी] के साथ
8] - आठवीं शादी - चितावा की [चौहान रानी] के साथ
9] - नोवीं शादी - परबतसर की [चौहान रानी] के साथ
जगमालजी की नो शादियां हुयी थी इन नो शादियों से राव जगमालजी के आठ पुत्र हुए -:
01 - राव खंगारजी
02 - सारंगदेवजी [सारंगदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ]
03 - सिंघदेवजी [सिंघदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ]
04 - कीरतसिंह [कीरतसिंह एक पठान के साथ लड़ाई में मरेगए थे] 

        कीरतसिंह के एक पुत्र हुवा किशनसिंह ।
05 - झुझारसिंह
06 - जयसिंह
07 - रामचंदजी - रामचंदजी उत्तर की तरफ चले गए थे इनके वंसज जम्मू और कश्मीरमें रहतें है।
08 - राणा पहाड़सिंह [राणा पहाड़सिंह की म्रत्यु 1549.में हुयी]
30 - राव खंगार जी – 
राव खंगार जी के वंशज खंगारोत कछवाह कहलाते है, अपने पिता जगमालजी के बाद राव खंगारजी जोबनेर के दूसरे राव थे। 
खंगारजी का मुख्य ठिकाना [गद्दी]जयपुर जिले में सांईवाड़ [Saiwar ] था, खंगारजी ने मुग़ल बादशाह अकबर की अनेक युद्धों में सहायता की थी,और जयपुर जिले के नारायणा ठिकाने को भी जीत था जिसके फलस्वरूप सम्राट अकबर को विशिष्ट सेवाओं के बदले नागौर, पुर और मंडल भी खंगारजी के अधीन रहे । खंगारजी की 1584 में मृत्यु हुयी थी ।

[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]

।।इति।।

56 comments:

  1. महाराजा खेत सिंग खंगार वाले खंगार और खंगरोत राजपूत का उद्भव एक ही है पर फर अलग कैसे है

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    1. मारवाड़ में जो खारया खंगार है वो अलग है और महाराव खंगार जी अलग है।
      ये नाम की समानता मात्र है जैसे शेखावत के पूर्वज महाराव शेखा जी थे और उनके नाम जैसे बीकानेर के पास में पूंगल के एक राजा शेखा जी भाटी भी हुये है।
      क़लम:- कुँवर सुमेर सिंह खंगारोत अमरसिंघोत ठिकाणा घटियाली

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    2. Th Rahalana.
      Khangarot Narayan dasot

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    3. Khangar or khangarot alag alag hai kya ?

      Khangarot Rajput hai to khangar kya hai kya khangar Rajput nahi hai

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    4. खेत सिंह खमगर गढ कुंडार mp me ह व खंगारोतअमीर के कछवाह वंसज ह।

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  2. खँगार सूर्यवंश में है या चंद्रवंश में


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    1. खंगारोत सूर्यवंश में आते है
      सूर्यवंश में 10 उप वंश आते है।
      क़लम:- कुँवर सुमेर सिंह खंगारोत अमरसिंघोत ठिकाणा घटियाली

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    2. Khangarot sorya vansh se hai
      Khangar Chandra vansh se
      Magar samajh ye nahi aaya ki Rao kangar maharao Singh khangar ke pita ji KO khangar sarnaam itna achcha kyon. Laga ki unhone Apne bachcho ka sarnaam kachwaha ki jagah khangar rakha

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  3. Please aap mujhe meri vansawali aur kuldevi k bare me bataye konsi kuldevi h jwala mata ya jamwaye mata please contact me
    Ravindra singh khangarot
    City ajmer
    Mobile no 9610671212

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    1. बन्ना सभी कछवाहा कुल चाहे वो खंगारोत हो या शेखावत, उनकी कुलदेवी जमुवाय माता ही है।
      खंगार जी के बेटे मनोहरदास जी जिनको जोबनेर की जागीर मिली तो उन्होंने जोबनेर में ज्वाला माता का नया मन्दिर बनवाया ओर ज्वाला माता को कुलदेवी स्वरूप मानने लगे।
      ये केवल मनोहरदासोत खंगारोतो के लिये है।

      और सभी खंगारोत की कुलदेवी जमुवाय माता है।
      क़लम:- कुँवर सुमेर सिंह खंगारोत अमरसिंघोत ठिकाणा घटियाली

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    2. Pawan Singh khangar 8707435053
      Apse baat karna chahta hai
      Khangarot and khangar samajh nahi paye

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  4. महाराव खंगार जी के पुत्र अमर सिंह जी, उनके वंशज
    अमरसिंघोत कहलाते है।
    कचनारिया में अमरसिंघोत है वहाँ से सन 1600 में
    से जाकर पचेवर के पास घटियाली में अमरसिंघोत बस गए।

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    1. Hukm Rajputo ki Rawal branch k bare me btaye... konse Rajput Rawal lgate h ... sarangkheda Maharashtra me bhi rawal Rajputo ka title h ... so please btaye!

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  5. कालख के राजा के बारे मे बताये plz

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  6. Rahalana fort dudu dist Jaipur
    Jaipur se 80km NH 8

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  7. Kisandasoto ke barah ganwo ke kya Nam h please tell me das to mujhe pata h

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    1. नगर,सितापुरा,कुराड़,बापुन्दो,कुरथल,आटोली,स्याह,डोरीया,कुम्हारीया,सांस,तुदेडा,(किरावल)नाओलाद किशनदासोत खंगारोत के 12 गांव है
      सतेंद्र सिंह खंगारोत ठिकाना नगर.

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  8. जगमाल जी के 5 पुत्रों के बारे में ही सबको जानकारी है हुकुम आने ये तीन और नाम कहा से लिख दिए। राघवेंद्र सिंह जी भादवा की खंगारोत कछवाहो का इतिहास में भी 5 ही है और नारायण के जो राजा थे गोपाल सिंह जी खंगारोत उन्होंने भी नरैना के ऊपर किताब लिखी थी राजा भोजराज जी खंगारोत की 389वी जयन्ती पर उसमे भी 5 ही है हुक्म । फिर ये तीन और कहा से आगये। क्रप्या कर के जानकारी देवे।

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    1. Junagadh ke rang khangarot garkundar ke khet Singh alag hai kya
      Ye bataiye khangarot rajpoot hai ya nhi

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  9. Sawarda Jaipur me jo kachavaha hai vo kon hai or kiske vansaj hai ek or kaha se ye aaye hai

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  10. Kalakh village ka full etihas ke bare me btaye ple.

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    1. Kalakh village ka full etihas ke bare me btaye please

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  11. Kalakh village ka full etihas ke bare me btaye please

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  12. Khangarot की कुलदेवी जमुवाय माता है फिर किताबों में ज्वाला माता क्यों बताया जाता हैं.

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  13. राव खंगार कितने थे, उन्होंने कब ओर कहां शासन किया है ,
    यह स्पष्ट करे।
    खगार ओर खंगारोत वंश एक हैं या अलग अलग है।

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    1. Alg h bhai
      Khangar chader vensi h
      Or khangarot suryve se h

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  14. मेरा मोबाइल नंबर9893400926,
    सम्पर्क कर सकते हैं।

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    1. Apna pora Naam pata batane ki kripa kare Banna ji

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  15. Aap se kuch puchna h plz muze call kre plz 9694586671

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  16. क्षत्रिय वंशावली कछवाहा खंगार खंगारोत पुस्तक आपके संपर्क में हो तो भेजने की कृपा करें
    पता ठा. राजेंद्र सिंह// श्री ठा. प्रताप सिंह खंगार ग्राम जुझारी उमरिया तह. मझौली जिला जबलपुर (म.प्र.)
    पिन 483225 मो.7974754415

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  17. This comment has been removed by the author.

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  18. Hukm Rajputo ki Rawal branch k bare me btaye ... sarangkheda (M.H.) me bhi rawal branch h .. to please hkm koi btaye inke bare me

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  19. खंगार सिंह जी के आठवें पुत्र भाखर सिंह जी साखुन ठिकाने के जागीरदार थे इस लेख में उन्हे साखूफोरट, सादुलपुर तहसील, चुरू का जागीरदार बताया गया है जो की गलत है वह गाँव अलग है इसे सही कीजिए भाखर सिंह जी दुदु तहसील के साखुन ठिकाने के जागीरदार थे जो की जयपुर जिले में आता है मे उन्ही का वंशज हु

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    1. जय श्रीराम ।। जय माँ भवानी
      हुक्म भाखरसिंह जी खंगारोत के प्रपोत्र हुए थे खड़गसिंह जी खंगारोत कृपया उनकी वंशावली उपलब्ध करा दीजिये इनका जन्म किस सम्वत ईस्वी में हुआ था इनके पिता महाराज श्री का क्या नाम था इनके वंशजो की सम्पूर्ण वंशावली उपलब्ध करा दीजिये

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  20. Replies
    1. Lekin bhaisahab khet khangar Junagad kachh ke rahane bale the or Prathviraj chauhan ke senapati the jinko gadkundar ka raj diya tha ye Gujarat ke hai jinki sakha Jadeja chudasma sarvaiya rayjada Or khengar anek namo se jana jata hai
      Shivendra pratap singh khangar lalitpur up..

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  21. Khangar Rajput hai ya nhi ? Agar hai to inhe khet singh khangar garhkundar jaisa thikana hone ke bawjud kyo lower category me dala gya

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  22. ठाकुर बाघसिंह जी के वशंजो का इतिहास बताने की कृपा करे हूकूम

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  23. हुक्म खंगार जी से पहले भी कच्छ्वाहा वंश में कोई खंगार नाम के महाराज श्री हुए थे क्या सम्वत 1209 के आस पास कर

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  24. जय श्रीराम ।। जय माँ भवानी
    हुक्म भाखरसिंह जी खंगारोत के प्रपोत्र हुए थे खड़गसिंह जी खंगारोत कृपया उनकी वंशावली उपलब्ध करा दीजिये इनका जन्म किस सम्वत ईस्वी में हुआ था इनके पिता महाराज श्री का क्या नाम था इनके वंशजो की सम्पूर्ण वंशावली उपलब्ध करा दीजिये

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  25. हुक्म इसमे खंगारोत राजपूतो के किशनगढ़ ठिकाने का कोई वर्णन नही है कृपया उनके बारे में भी बताए कि वहां खंगारोत वँश के कौन कौनसे महाराज हुए और कहा कहा पर उन्होंने शासन किया और किस सम्वत ईस्वी में गए और किशनगढ़ से कौनसे महाराज श्री किस सम्वत ईसवी में हरियाणा की तरफ गए थे उनका नाम क्या था उनके पिता महाराज दादा महाराज का क्या नाम था उनके कितने पुत्र थे उनके नाम कृपया बताने का कष्ट करें।

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