भीमपोता कछवाह (नरवर का कछवाह)
राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह -शाखा - भीमपोता कछवाह (नरवर का कछवाह) भीमपोता कछवाह (नरवर का कछवाह) – आमेर के दसवें राजा भीमसिंह के वंसज भीमपोता कछवाह कहलातें हैं । भीमसिंह का आमेर पर शासनकाल 1534 से 1537 तक था । राजा भीमसिंह की म्रत्यु 22 जुलाई 1537 को हुयी थी। राजा भीमसिंह के दो पुत्र थे :-
01 - रतनसिंह
02 - आसकरणसिंह
रतनसिंह आमेर के ग्यारवे राजा बने, रतनसिंह का आमेर पर शासनकाल 1537 से 1548 तक था । राजा रतनसिंह की म्रत्यु 15 मई 1948 को हुयी थी।
आसकरणसिंह के वंसज यानि राजा भीमसिंह के पोते, भीमपोता कछवाह कहलातें हैं ।
आसकरणसिंह के पुत्र हुवा राजसिंह जो नरवर चले गए थे तथा वंहा के राजा बने जिसके कारन इनके वंसजों को नरवर का कछवाह भी कहा जाता है।
राजा राजसिंह [नरवर] के पुत्र हुवा रामदास जो नरवर के ठाकुर बनें।
आसकरणसिंह के पुत्र हुवा राजसिंह जो नरवर चले गए थे तथा वंहा के राजा बने जिसके कारन इनके वंसजों को नरवर का कछवाह भी कहा जाता है।
राजा राजसिंह [नरवर] के पुत्र हुवा रामदास जो नरवर के ठाकुर बनें।
भीमपोता कछवाहोँ (नरवर का कछवाह) का पीढी क्रम इस प्रकार है :-
1. रतनसिँह जी - भीमसिँह जी - प्रथ्वीराज सिँह (प्रिथीराज) - चन्द्रसेन - राव उधा जी (उदरावजी,उधरावजी) - बनवीर जी (वणवीर) - नाहरसिंहदेव जी - उदयकरण जी - जुणसी जी (जुणसी, जानसी, जुणसीदेव जी, जसीदेव) - जी - कुन्तलदेव जी – किलहन देवजी (कील्हणदेव,खिलन्देव) - राज देवजी - राव बयालजी (बालोजी) - मलैसी देव - पुजना देव (पाजून, पज्जूणा) – जान्ददेव - हुन देव - कांकल देव - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढ देव (सोरा सिंह) - इश्वरदास (ईशदेव जी) 2. आसकरण जी - भीमसिँह जी - प्रथ्वीराज सिँह (प्रिथीराज) - चन्द्रसेन - राव उधा जी (उदरावजी,उधरावजी) - बनवीर जी (वणवीर) - नाहरसिंहदेव जी - उदयकरण जी - जुणसी जी (जुणसी, जानसी, जुणसीदेव जी, जसीदेव) - जी - कुन्तलदेव जी – किलहन देवजी (कील्हणदेव,खिलन्देव) - राज देवजी - राव बयालजी (बालोजी) - मलैसी देव - पुजना देव (पाजून, पज्जूणा) – जान्ददेव - हुन देव - कांकल देव - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढ देव (सोरा सिंह) - इश्वरदास (ईशदेव जी)
ख्यात अनुसार भीमपोता (नरवर का कछवाह) कछवाहों का पीढी क्रम ईस प्रकार है –:
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
01 -भगवान श्री राम - भगवान श्री राम के बाद कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश का इतिहास इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ। भगवान श्री राम के दो पुत्र थे –
01 - लव
02 - कुश
रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है। - लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लाहौर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
01 - लव
02 - कुश
रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है। - लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लाहौर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
02 – कुश - भगवान श्री राम के पुत्र लव, कुश हुये।
03 - अतिथि - कुश के पुत्र अतिथि हुये।
04 - वीरसेन (निषध) - वीरसेन जो कि निषध देश के एक राजा थे। भारशिव राजाओं में वीरसेन सबसे प्रसिद्ध राजा था। कुषाणों को परास्त करके अश्वमेध यज्ञों का सम्पादन उसी ने किया था। ध्रुवसंधि की 2 रानियाँ थीं। पहली पत्नी महारानी मनोरमा कलिंग के राजा वीरसेन की पुत्री थी । वीरसेन (निषध) के एक पुत्री व दो पुत्र हुए थे:-
01- मदनसेन (मदनादित्य) – (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) सुकेत के 22 वेँ शासक राजा मदनसेन ने बल्ह के लोहारा नामक स्थान मे सुकेत की राजधानी स्थापित की। राजा मदनसेन के पुत्र हुए कमसेन जिनके नाम पर कामाख्या नगरी का नाम कामावती पुरी रखा गया।
02 - राजा नल - (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) निषध देश पुराणानुसार एक देश का प्राचीन नाम जो विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित था।
03 - मनोरमा (पुत्री) - अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती । मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और लीलावती के शत्रुजित ।माठर वंश के बाद कलिंग में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया था। माठर वंश के बाद500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। वर्तमान उड़ीसा राज्य को प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य , कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि भी नामों से जाना जाता था। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह वंश, मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया।
05 - राजा नल - (राजा वीरसेन का पुत्र राजा नल) निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र, राजा नल का विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के साथ हुआ था। नल-दमयंती - विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन के पुत्र नल राजा नल स्वयं इक्ष्वाकु वंशीय थे। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) जिसे मौर्य काल में स्वतंत्र आटविक जनपद क्षेत्र कहा गया इसे समकालीन कतिपय ग्रंथों में महावन भी उल्लेखित किया गया है। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र में अनेक नाम नल से जुडे हुए हैं जैसे - नलमपल्ली, नलगोंडा, नलवाड़, नलपावण्ड, नड़पल्ली, नीलवाया, नेलाकांकेर, नेलचेर, नेलसागर आदि।महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र पर नलवंश के राजा व्याघ्रराज (350-400 ई.) की सत्ता का उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशास्ति से मिलता है। व्याघ्रराज के बाद, व्याघ्रराज के पुत्र वाराहराज (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। वाराहराज का शासनकाल वाकाटकों से जूझता हुआ ही गुजरा। राजा नरेन्द्र सेन ने उन्हें अपनी तलवार को म्यान में रखने के कम ही मौके दिये। वाकाटकों ने इसी दौरान नलों पर एक बड़ी विजय हासिल करते हुए महाकांतार का कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया था। वाराहराज के बाद, वाराहराज के पुत्र भवदत्त वर्मन (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। भवदत्त वर्मन के देहावसान के बाद के पश्चात उसका पुत्र अर्थपति भट्टारक (460-475 ई.) राजसिंहासन पर बैठे। अर्थपति की मृत्यु के पश्चात नलों को कडे संघर्ष से गुजरना पडा जिसकी कमान संभाली उनके भाई स्कंदवर्मन (475-500 ई.) नें जिसे विरासत में सियासत प्राप्त हुई थी। इस समय तक नलों की स्थिति क्षीण होने लगी थी जिसका लाभ उठाते हुए वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन नें पुन: महाकांतार क्षेत्र के बडे हिस्सों पर पाँव जमा लिये। नरेन्द्र सेन के पश्चात उसके पुत्र पृथ्वीषेण द्वितीय (460-480 ई.) नें भी नलों के साथ संघर्ष जारी रखा। अर्थपति भटटारक को नन्दिवर्धन छोडना पडा तथा वह नलों की पुरानी राजधानी पुष्करी लौट आया। स्कंदवर्मन ने शक्ति संचय किया तथा तत्कालीन वाकाटक शासक पृथ्वीषेण द्वितीय को परास्त कर नल शासन में पुन: प्राण प्रतिष्ठा की। स्कंदवर्मन ने नष्ट पुष्करी नगर को पुन: बसाया अल्पकाल में ही जो शक्ति व सामर्थ स्कन्दवर्मन नें एकत्रित कर लिया था उसने वाकाटकों के अस्तित्व को ही लगभग मिटा कर रख दिया । के बाद नल शासन व्यवस्था के आधीन कई माण्डलिक राजा थे। उनके पुत्र पृथ्वीव्याघ्र (740-765 ई.) नें राज्य विस्तार करते हुए नेल्लोर क्षेत्र के तटीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। यह उल्लेख मिलता है कि उन्होंनें अपने समय में अश्वमेध यज्ञ भी किया। पृथ्वीव्याघ्र के पश्चात के शासक कौन थे इस पर अभी इतिहास का मौन नहीं टूट सका है। नल-दम्यंति के पुत्र-पुत्री इन्द्रसेना व इन्द्रसेन थे।ब्रह्माजी की 71वीँ पिढी मेँ जन्में राजा नल से इतिहास में प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी राजपूतों की एक अलग शाखा चली जो कछवाह के नाम से विख्यात है ।
06– ढोला - राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था। जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है ।
07 – लक्ष्मण - ढोला के लक्ष्मण नामक पुत्र हुआ।
08 - भानु - लक्ष्मण के भानु नामक पुत्र हुआ।
09 – बज्रदामा - भानु के बज्रदामा नामक पुत्र हुआ, भानु के पुत्र परम प्रतापी महाराजा धिराज बज्र्दामा हुवा जिस ने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया।
10 - मंगल राज - बज्रदामा के मंगल राज नामक पुत्र हुआ। बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के मंगल राज के 2 पुत्र हुए:-
01 - किर्तिराज (बड़ा पुत्र) - किर्तिराज को ग्वालियर का राज्य मिला था।
02 - सुमित्र (छोटा पुत्र) - सुमित्र को नरवर का राज्य मिला था। नरवार किला, शिवपुरी के बाहरी इलाके में शहर से 42 किमी. की दूरी पर स्थित है जो काली नदी के पूर्व में स्थित है। नरवर शहर का ऐतिहासिक महत्व भी है और इसे 12 वीं सदी तक नालापुरा के नाम से जाना जाता था। इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं। इस नरवर राज्य को ‘निषाद राज्य भी कहते थे, जहां राजा वीरसेन का शासन था। उनके ही पुत्र का नाम राजा नल था। राजा नल का विवाह दमयंती से हुआ था। बाद में चौपड़ के खेल में राजा नल ने अपनी सत्ता को ही दांव पर लगा दिया था और सब कुछ हार गए। इसके बाद उन्हें अपना राज्य छोड़कर निषाद देश से जाना पड़ा था। 12वीं शताब्दी के बाद नरवर पर क्रमश: कछवाहा, परिहार और तोमर राजपूतों का अधिकार रहा, जिसके बाद 16वीं शताब्दी में मुग़लों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। मानसिंह तोमर (1486-1516 ई.) और मृगनयनी की प्रसिद्ध प्रेम कथा से नरवर का सम्बन्ध बताया जाता है।
11 - सुमित्र - मंगल राज का छोटा पुत्र सुमित्र था।
12 - ईशदेव जी - सुमित्र के ईशदेव नामक पुत्र हुआ। इश्वरदास (ईशदेव जी) 966 – 1006 ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के शासक थे।
13 - सोढदेव - इश्वरदास (ईशदेव जी) के सोढ देव (सोरा सिंह) नामक पुत्र हुआ
14 - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढदेव जी के दुलहराय जी (ढोलाराय) नामक पुत्र हुआ । दुलहराय जी (ढोलाराय) (1006-36) आमेर (जयपुर) के शासक थे। दुलहराय जी (ढोलाराय) के 3 पुत्र हुये:-
01 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
02 - डेलण जी
03 - वीकलदेव जी
15 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-1038) आमेर (जयपुर) के शासक थे। कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) के पांच पुत्र हुए:-
01 - अलघराय जी
02 - गेलन जी
03 - रालण जी
01 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
02 - डेलण जी
03 - वीकलदेव जी
15 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-1038) आमेर (जयपुर) के शासक थे। कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) के पांच पुत्र हुए:-
01 - अलघराय जी
02 - गेलन जी
03 - रालण जी
04 - डेलण जी
05 - हुन देव
16 - हुन देव - कांकल देव (काँखल देव) के हुन देव नामक पुत्र हुआ।
हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
05 - हुन देव
16 - हुन देव - कांकल देव (काँखल देव) के हुन देव नामक पुत्र हुआ।
हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
17 - जान्ददेव - हुन देव के जान्ददेव नामक पुत्र हुआ। जान्ददेव (1053 – 1070) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
18 – पंञ्जावन - जान्ददेव के पंञ्जावन (पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) नामक पुत्र हुआ।पंञ्जावन (पुजना देव,पाजून, पज्जूणा) (1070 – 1084) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
19 - मलैसी देव - राजा मलैसिंह देव पंञ्जावन (पुंजदेव, पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) का पुत्र था, तथा मलैसिंह दौसा का सातवाँ राजा था मलैसी देव दौसा के बाद राजा मलैसिंह देव 1084 से 1146 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। भारतीय ईतीहास में मलैसी को मलैसी, मलैसीजी, मलैसिंहजी आदी नामों से भी जाना एंव पहचाना जाता है, मगर इन का असली नाम मलैसी देव था। जैसा कि सभी को मालुम है सुंन्दरता के वंश में होकर (मलैसीजी मलैसिंहजी) ने बहुतसी शादीयाँ करी थी। जिन में राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में करी थी इन सब की जानकारी बही भाटों की बही एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान तो खुलकर बताती है मगर इतिहास के पन्ने इस विषय पर मौन हैं।
मलैसी देव के बहुत से पुत्र थे मगर हमें इनमें से सात का तो हर जगह ब्योरा मिल जाता है बाकी पर इतीहास अपनी चुपी नहीं तोड़ता है । मगर हम जागा और जातीगत ईतीहास लिखने वाले बही-भीटों की बही के प्रमाण एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान पर जायें तो पता चलता है राजा मलैसी देव कि सन्तानोँ मेँ शुद् रजपुती खुन दो पुत्रोँ मेँ था राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी में। राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी के अलावा बकी पाँच ने कसी कारण वंश दूसरी जाती की लड़की से शादी की जीससे एक अलग- अलग जातीयाँ निकली। मलैसी देव ने राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में शादीयाँ करी थी इन सब अन्य जातीयों से पुत्र -:
01 - तोलाजी - टाक दर्जी छींपा
02 - बाघाजी - रावत बनिया
03 - भाण जी - डाई गुजर
04 - नरसी जी - निठारवाल जाट
05 - रतना जी - सोली सुनार,आमेरा नाई
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से एक अलग जाती बनगयी है
06 - जैतल जी (जीतल जी) - जैतल जी (जीतल जी) (1146 – 1179) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
07 - राव बयालदेव
20 - राव बयालदेव - राजा मलैसिंह देव के पुत्र राव बयालदेव ।
मलैसी देव के बहुत से पुत्र थे मगर हमें इनमें से सात का तो हर जगह ब्योरा मिल जाता है बाकी पर इतीहास अपनी चुपी नहीं तोड़ता है । मगर हम जागा और जातीगत ईतीहास लिखने वाले बही-भीटों की बही के प्रमाण एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान पर जायें तो पता चलता है राजा मलैसी देव कि सन्तानोँ मेँ शुद् रजपुती खुन दो पुत्रोँ मेँ था राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी में। राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी के अलावा बकी पाँच ने कसी कारण वंश दूसरी जाती की लड़की से शादी की जीससे एक अलग- अलग जातीयाँ निकली। मलैसी देव ने राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में शादीयाँ करी थी इन सब अन्य जातीयों से पुत्र -:
01 - तोलाजी - टाक दर्जी छींपा
02 - बाघाजी - रावत बनिया
03 - भाण जी - डाई गुजर
04 - नरसी जी - निठारवाल जाट
05 - रतना जी - सोली सुनार,आमेरा नाई
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से एक अलग जाती बनगयी है
06 - जैतल जी (जीतल जी) - जैतल जी (जीतल जी) (1146 – 1179) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
07 - राव बयालदेव
20 - राव बयालदेव - राजा मलैसिंह देव के पुत्र राव बयालदेव ।
21 - राज देवजी - राव बयालदेव के पुत्र राज देवजी। राज देवजी (1179 – 1216) आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा राव बयालजी (बालोजी) का पुत्र राजा देव जी दौसा का नौँवा राजा बना जिसका कार्यकाल 1179-1216 तक। राजा देव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
01 - बीजलदेव जी
02 - किलहनदेव जी
03 - साँवतसिँह जी
05 - सिहा जी
06 - बिकसी [ बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी ]
07 - पाला जी (पिला जी)
08 - भोजराज जी
09 - राजघरजी [राढरजी]
10 - दशरथ जी
11 - राजा कुन्तलदेव जी
22 - कुन्तलदेव जी - कुन्तलदेव जी 1276 से 1317 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा कुन्तलदेव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
01 - बधावा जी
02 - हमीर जी (हम्मीर देव जी)
03 - नापा जी
04 - मेहपा जी
05 - सरवन जी
06 - ट्यूनगया जी
07 - सूजा जी
08 - भडासी जी
09 - जीतमल जी
10 - खींवराज जी
11 - जोणसी
23 - जोणसी - राजा जोणसी कुन्तलदेव जी के पुत्र थे, इन को को जुणसी जी, जुणसी, जानसी, जुणसी देव जी, जसीदेव आदि कई नामों से पुकारा जाता था, आमेर के 13 वें शासक राजा जुणसी देव के चार पुत्र थे -:
01 - जसकरण जी
02 - उदयकरण जी
03 - कुम्भा जी
04 - सिंघा जी
24 - उदयकरण जी [उदयकर्ण] - उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे। राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है। राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी। उदयकरजी के आठ पुत्र थे :-
01 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी]
02 - राव बरसिंह
03 - राव बालाजी
04 - राव शिवब्रह्म
05 - राव पातालजी
06 - राव पीपाजी
07 - राव पीथलजी
08 - राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र)
25 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी] - राव नारोसिंह - [गांव वाटका, जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ] आमेर के तीसरे राजा उदयकरणजी के बड़े पुत्र नाहरसिंह देवजी थे, राजा नरसिंह देवजी, आमेर के चौथे राजा थे जिनका शासनकाल 1388 से 1413 तक रहा है। राजा नाहरसिंह देवजी की म्रत्यु 1413 में हुयी थी।
26 - बनबीरसिंह - राजा राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी] का पुत्र हुवा राजा बनबीरसिंह, राजा बनबीरसिंह आमेर का पांचवां राजा बना जिनका शासनकाल 1413 से 1424 तक रहा है। राजा नाहरसिंह देवजी की म्रत्यु 1424 में हुयी थी। राजा बनवीरजी के वंशज बनवीरपोता (वणवीरपोता) कछवाह कहलाते हैं । राजा बनवीरजी के छह पुत्र थे :-
राजा बनवीरजी के पुत्र बरेजी के वंसज बरेपोता कछवा कहलाते हैं।
राजा बनवीरजी के पुत्र बिरमजी के वंसज बिरमपोता कछवाह कहलाते हैं।
राजा बनवीरजी के पुत्र मेंगलजी के वंसज मेंगलपोता कछवाह कछवाह कहलाते हैं ।
01 - बीजलदेव जी
02 - किलहनदेव जी
03 - साँवतसिँह जी
05 - सिहा जी
06 - बिकसी [ बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी ]
07 - पाला जी (पिला जी)
08 - भोजराज जी
09 - राजघरजी [राढरजी]
10 - दशरथ जी
11 - राजा कुन्तलदेव जी
22 - कुन्तलदेव जी - कुन्तलदेव जी 1276 से 1317 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा कुन्तलदेव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
01 - बधावा जी
02 - हमीर जी (हम्मीर देव जी)
03 - नापा जी
04 - मेहपा जी
05 - सरवन जी
06 - ट्यूनगया जी
07 - सूजा जी
08 - भडासी जी
09 - जीतमल जी
10 - खींवराज जी
11 - जोणसी
23 - जोणसी - राजा जोणसी कुन्तलदेव जी के पुत्र थे, इन को को जुणसी जी, जुणसी, जानसी, जुणसी देव जी, जसीदेव आदि कई नामों से पुकारा जाता था, आमेर के 13 वें शासक राजा जुणसी देव के चार पुत्र थे -:
01 - जसकरण जी
02 - उदयकरण जी
03 - कुम्भा जी
04 - सिंघा जी
24 - उदयकरण जी [उदयकर्ण] - उदयकरण जी राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे। राजा उदयकरणजी आमेर के तीसरे राजा थे जिनका शासनकाल 1366 से 1388 में रहा है। राजा उदयकरणजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी । उदयकरजी की म्रत्यु 1388 में हुयी थी। उदयकरजी के आठ पुत्र थे :-
01 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी]
02 - राव बरसिंह
03 - राव बालाजी
04 - राव शिवब्रह्म
05 - राव पातालजी
06 - राव पीपाजी
07 - राव पीथलजी
08 - राव नापाजी (राजाउदयकरणजी के आठवें पुत्र)
25 - राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी] - राव नारोसिंह - [गांव वाटका, जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ] आमेर के तीसरे राजा उदयकरणजी के बड़े पुत्र नाहरसिंह देवजी थे, राजा नरसिंह देवजी, आमेर के चौथे राजा थे जिनका शासनकाल 1388 से 1413 तक रहा है। राजा नाहरसिंह देवजी की म्रत्यु 1413 में हुयी थी।
26 - बनबीरसिंह - राजा राव नारोसिंह [राजा नरसिंह, नाहरसिंह देवजी] का पुत्र हुवा राजा बनबीरसिंह, राजा बनबीरसिंह आमेर का पांचवां राजा बना जिनका शासनकाल 1413 से 1424 तक रहा है। राजा नाहरसिंह देवजी की म्रत्यु 1424 में हुयी थी। राजा बनवीरजी के वंशज बनवीरपोता (वणवीरपोता) कछवाह कहलाते हैं । राजा बनवीरजी के छह पुत्र थे :-
राजा बनवीरजी के पुत्र बरेजी के वंसज बरेपोता कछवा कहलाते हैं।
राजा बनवीरजी के पुत्र बिरमजी के वंसज बिरमपोता कछवाह कहलाते हैं।
राजा बनवीरजी के पुत्र मेंगलजी के वंसज मेंगलपोता कछवाह कछवाह कहलाते हैं ।
01 - हरजी - हरजी के वंसज हरजी का कछवाह कहलाते हैं। मगर हरजी के पोते बनवीरपोता (वणवीरपोता) कछवाह कहलातें हैं क्यों की वे बाद आकर नारुजी के वंसजों के साथ रहने लगे थे।
02 - बरेजी - बरेजी के वंसज बरेपोता कछवा कहलाते हैं। 03 - बीरमजी - बिरमजी के वंसज बिरमपोता कछवाह कहलाते हैं।
04 - मेंगलजी - मेंगलजी के वंसज मेंगलपोता कछवाह कछवाह कहलाते हैं । 05 - राव नारुजी - [नरोजी उर्फ नाराजी, नारोसिंह, नारूसिंह] राव नारुजी गांव वाटका में रहने के कारण इनको वाटका आ वतकजी भी कहा जाता था।[नारूसिंह राव नारोसिंह के वंसज कछवाहोँ की बारह कोटङी मेँ शामिल हैं।
06 - उधाराव
वाटका गाँव - राजस्थान राज्य के जयपुर जिले की चाकसू तहसील में है, राव नारो वाटका गाँव व बनिरपोता ठाकुरो के पहले मुख्या थे। राव नारो के छह पीढ़ी बाद सातवी पीढ़ी में वाटका गाँव के ठाकुर बने भैरूसिंह , भैरूसिंह के एक लड़की का जनम हुवा बृजकंवर, जिसकी शादी पीलवा गाँव [ प्राचीन राज्य जोधपुर (फलोदी परगना )] के ठाकुर जीवराजसिंह के पुत्र ठाकुर फतेहसिंह चम्पावत के साथ हुयी , फतेहसिंह चम्पावत ठिकाना नैला [Naila] संस्थापक भी थे।
27- राजा उधाराव - राव राजा उधाराव आमेर के छटे राजा थे जिनका शासनकाल 1424 से 1453 तक था राव राजा उधाराव की म्रत्यु 1453 इन हुयी थी।
28- राजा चन्द्रसेन - राव राजा उधाराव का पुत्र हुवा राजा चन्द्रसेन। राजा चन्द्रसेन आमेर के सातवें राजा थे। जिनका शासनकाल 1453 से 1502 और 1467 व 1502 तक था।
राजा चन्द्रसेन की मार्च 1502 इन हुयी थी। राजा चन्द्रसेन के दो पुत्र हुए :-
01 - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम]
02 - राव कुम्भाजी - राव कुम्भाजी के वंशज कुंम्भावत कछवाह कहलाते है ।
[कृपया ध्यान दें- कुम्हार जाति [माटी के बरतन बनाने वाले ] को "कुमावत" शब्द लिखने का अधिकार है, नकि "कुंम्भावत" शब्द लिखने का अधिकार नही है ।]
29 - पृथ्वीराजसिंह[प्रथम] - पृथ्वीराजसिंह[प्रथम] आमेर के आठवें राजा थे।जिनका शासनकल 1502 से 1527 तक रहा है , पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] आमेर की गद्दी पर 11 फरवरी 1503 को बैठे, पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की म्रत्यु 4 नवम्बर 1527 को हुयी थी।
पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की नो शादियां हुयी थी जिनमें
1] बीकानेर के तीसरे राव लुनकरणजी की पुत्रि बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर के साथ हुयी।
2] महाराणामेवर के महाराणा राइमालसिंह की पुत्रि
3] राव ज्ञानसिंह गौड़ की पुत्रि सोहागकांवर
इन तीन को ही पूर्ण पत्नी का दर्जा था बाकी छह रानियोँ को नहीं।
पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की नो रानियों से कुल अठारह पुत्र और तीन पुत्रियां हुए थे जिन में से पांच पुत्रों की म्रत्यु छोटी उम्र में ही हो गयी थी -
04 - मेंगलजी - मेंगलजी के वंसज मेंगलपोता कछवाह कछवाह कहलाते हैं । 05 - राव नारुजी - [नरोजी उर्फ नाराजी, नारोसिंह, नारूसिंह] राव नारुजी गांव वाटका में रहने के कारण इनको वाटका आ वतकजी भी कहा जाता था।[नारूसिंह राव नारोसिंह के वंसज कछवाहोँ की बारह कोटङी मेँ शामिल हैं।
06 - उधाराव
वाटका गाँव - राजस्थान राज्य के जयपुर जिले की चाकसू तहसील में है, राव नारो वाटका गाँव व बनिरपोता ठाकुरो के पहले मुख्या थे। राव नारो के छह पीढ़ी बाद सातवी पीढ़ी में वाटका गाँव के ठाकुर बने भैरूसिंह , भैरूसिंह के एक लड़की का जनम हुवा बृजकंवर, जिसकी शादी पीलवा गाँव [ प्राचीन राज्य जोधपुर (फलोदी परगना )] के ठाकुर जीवराजसिंह के पुत्र ठाकुर फतेहसिंह चम्पावत के साथ हुयी , फतेहसिंह चम्पावत ठिकाना नैला [Naila] संस्थापक भी थे।
27- राजा उधाराव - राव राजा उधाराव आमेर के छटे राजा थे जिनका शासनकाल 1424 से 1453 तक था राव राजा उधाराव की म्रत्यु 1453 इन हुयी थी।
28- राजा चन्द्रसेन - राव राजा उधाराव का पुत्र हुवा राजा चन्द्रसेन। राजा चन्द्रसेन आमेर के सातवें राजा थे। जिनका शासनकाल 1453 से 1502 और 1467 व 1502 तक था।
राजा चन्द्रसेन की मार्च 1502 इन हुयी थी। राजा चन्द्रसेन के दो पुत्र हुए :-
01 - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम]
02 - राव कुम्भाजी - राव कुम्भाजी के वंशज कुंम्भावत कछवाह कहलाते है ।
[कृपया ध्यान दें- कुम्हार जाति [माटी के बरतन बनाने वाले ] को "कुमावत" शब्द लिखने का अधिकार है, नकि "कुंम्भावत" शब्द लिखने का अधिकार नही है ।]
29 - पृथ्वीराजसिंह[प्रथम] - पृथ्वीराजसिंह[प्रथम] आमेर के आठवें राजा थे।जिनका शासनकल 1502 से 1527 तक रहा है , पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] आमेर की गद्दी पर 11 फरवरी 1503 को बैठे, पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की म्रत्यु 4 नवम्बर 1527 को हुयी थी।
पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की नो शादियां हुयी थी जिनमें
1] बीकानेर के तीसरे राव लुनकरणजी की पुत्रि बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर के साथ हुयी।
2] महाराणामेवर के महाराणा राइमालसिंह की पुत्रि
3] राव ज्ञानसिंह गौड़ की पुत्रि सोहागकांवर
इन तीन को ही पूर्ण पत्नी का दर्जा था बाकी छह रानियोँ को नहीं।
पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की नो रानियों से कुल अठारह पुत्र और तीन पुत्रियां हुए थे जिन में से पांच पुत्रों की म्रत्यु छोटी उम्र में ही हो गयी थी -
01 - भीमसिंह - भीमसिंह का [जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,सबसे छोटा पुत्र ) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
02 - पूरणमल - पूरणमल का [जन्म तंवर रानी की कोख से, दूसरा पुत्र] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की 1527 में म्रत्यु के बाद राजा पूरणमल का जन्म 5 नवम्बर 1527 को तंवर रानी की कोख से हुवा था। राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के दूसरे पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राजा पूरणमल आमेर के नवें राजा थे जिनका शासनकल 1527 से 1534 तक रहा है। राजा पूरणमल को निमेरा की जागीर मिली थी, राजा पूरणमल की शादी एक राठौड़ रानी से हुयी थी जिससे उत्पन संतानें पूरणमलोत कछवाह कहलाये जो कछवाह राजपरिवार की बारह कोटड़ी में सामिल है।
पूरनमल भारमल के ज्येष्ठ भाई थे, राजा पूरनमल, मुग़ल बादशाह हुमायूं के पक्ष में लड़ाई कर बयाना के किले पर अधिकार कराने में सहायता करते हुए 1534 में मंडरायल की लड़ाई में मारे गए। उसका सूरजमल या सूजासिंह नाम का बेटा था। लेकिन उस समय सूजासिंह [सुजामल] उम्र में बहुत छोटे थे ।
उसे राजा नहीं बनने दिया और पूरनमल के छोटे भाई भीम सिंह को आमेर का सिंहासन दे दिया गया। भीम सिंह के बाद उसके बेटे राजा रतन सिंह और बाद में सन 1548, में राजा भारमल को राजा बना दिया गया था। [वर्तमान में मंडरायल' (Mandrayal) राजस्थान (भारत,) राज्य के करौली जिले का एक क़स्बा है जो जयपुरसे 160 किमी दूर है]
03 - भारमल जी ('बिहारीमल') - भारमल का [ जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,चौथा पुत्र ) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
04 - सांगासिंह (सांगो) - सांगासिंह का (जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,पांचवा पुत्र जिसने सांगानेर बसाया) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
05 - राव स्योसिंह - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
06 - राव प्रतापसिंह - [राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। प्रतापसिंह के वंसज प्रतापपोता कछवाह कहलाये]
07 - राव रामसिंह - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। [रामसिंह के वंसज रामसिंगहोत कछवाह कहलाये]
08 - राव गोपालसिंह - राव गोपालसिंह का (जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव गोपालसिंह को चोमू और समोद जागीर मिली,राव गोपालसिंह की शादी करौली के ठाकुर की पुत्रि सत्यभामा के साथ हुयी थी।
09 - रूपसिंह - रूपसिंह का [रूपसिंह का जन्म गोड़ रानी की कोख से हुवा था, रूपसिंह को दौसा की जागीर मिली थी। रूपसिंह के वंसज रुपसिंगहोत कछवाह कहलाये] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। रूपसिंह की म्रत्यु 4 नवम्बर 1562 को हुयी थी।
11 - भीकाजी - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। [राव भीकाजी के वंसज भिकावत कछवाह कहलाये]
12 - साईंदासजी - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव साईंदासजी के वंसज साईंदासोत कछवाह कहलाये]
13 - जगमालजी - राव जगमालजी का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, छटे पुत्र] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव जगमालजी को दिग्गी और जोबनेर दो जागीर मिली थी, राव जगमालजी ने अपने पिता पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] से झगड़ा करके आमेर छिड़कर अमरकोट में रहने लगे, वंहाँ उन्होंने अमरकोट के राणा पहाड़सिंह की पुत्रि नेतकँवर से शादी करली। राव जगमालजी के पांच पुत्र हुए खंगारजी, सिंघदेवजी [सिंघदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ], सारंगदेवजी [सारंगदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ], जयसिंह'रामचंदजी राणा पहाड़सिंह की म्रत्यु 1549.में हुयी ।
14 - पंचायणसिंह - पंचायणसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। पंचायणसिंह सामरिया ठिकाने के संस्थापक थे,पंचायणसिंह के वंसज पंचायणोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बढ़ कोटड़ी में सामिल है ।
15 - बलभद्रसिंह - बलभद्रसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। अचरोल ठिकाने के संस्थापक बलभद्रसिंह थे । बलभद्रसिंह के वंसज बालभदरोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ।
16 - सुरतानसिंह - सुरतानसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। सुरतानसिंह सुरौठ ठिकाने के संस्थापक थे । जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । 17 - चतुर्भुजसिंह - चतुर्भुजसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। चतुर्भुजसिंह बगरू ठिकाने के संस्थापक थे। चतुर्भुजसिंह के वंसज चतुर्भुजोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । ठाकुर चतुर्भुजसिंह के पुत्र हुवा कीरतसिंह जो चतुर्भुजसिंह के बाद बगरू के ठाकुर बने।
18 - कल्याणदास - कल्याणदास का जन्म सिसोदिया रानी की कोख से हुवा था, आठवाँ पुत्र), राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। कल्याणदास को कालवाड़ जागीर मिली, कल्याणदास के वंसज कल्याणोत कछवाह कहलाये। जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । जिस में पदमपुरा , लोटवाड़ा और कालवाड़ आदि गांव सामिल है। कल्याणदास के तीन पुत्र हुए करमसिंह, मोहलदाससिंह, जगन्नाथसिंह
30 - भीमसिंह - भीमसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,सबसे छोटा पुत्र भीमसिंह राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के सबसे छोटे पुत्र थे और आमेर के सातवें राजा थे। चन्द्रसेनजी के पोते थे। आमेर के दसवें राजा भीमसिंह के वंसज भीमपोता कछवाह कहलातें हैं । भीमसिंह का आमेर पर शासनकाल 1534 से 1537 तक था । राजा भीमसिंह की म्रत्यु 22 जुलाई 1537 को हुयी थी। राजा भीमसिंह के दो पुत्र थे :- रतनसिंह,आसकरणसिंह ।
02 - पूरणमल - पूरणमल का [जन्म तंवर रानी की कोख से, दूसरा पुत्र] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] की 1527 में म्रत्यु के बाद राजा पूरणमल का जन्म 5 नवम्बर 1527 को तंवर रानी की कोख से हुवा था। राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के दूसरे पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राजा पूरणमल आमेर के नवें राजा थे जिनका शासनकल 1527 से 1534 तक रहा है। राजा पूरणमल को निमेरा की जागीर मिली थी, राजा पूरणमल की शादी एक राठौड़ रानी से हुयी थी जिससे उत्पन संतानें पूरणमलोत कछवाह कहलाये जो कछवाह राजपरिवार की बारह कोटड़ी में सामिल है।
पूरनमल भारमल के ज्येष्ठ भाई थे, राजा पूरनमल, मुग़ल बादशाह हुमायूं के पक्ष में लड़ाई कर बयाना के किले पर अधिकार कराने में सहायता करते हुए 1534 में मंडरायल की लड़ाई में मारे गए। उसका सूरजमल या सूजासिंह नाम का बेटा था। लेकिन उस समय सूजासिंह [सुजामल] उम्र में बहुत छोटे थे ।
उसे राजा नहीं बनने दिया और पूरनमल के छोटे भाई भीम सिंह को आमेर का सिंहासन दे दिया गया। भीम सिंह के बाद उसके बेटे राजा रतन सिंह और बाद में सन 1548, में राजा भारमल को राजा बना दिया गया था। [वर्तमान में मंडरायल' (Mandrayal) राजस्थान (भारत,) राज्य के करौली जिले का एक क़स्बा है जो जयपुरसे 160 किमी दूर है]
03 - भारमल जी ('बिहारीमल') - भारमल का [ जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,चौथा पुत्र ) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
04 - सांगासिंह (सांगो) - सांगासिंह का (जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,पांचवा पुत्र जिसने सांगानेर बसाया) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
05 - राव स्योसिंह - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे।
06 - राव प्रतापसिंह - [राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। प्रतापसिंह के वंसज प्रतापपोता कछवाह कहलाये]
07 - राव रामसिंह - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। [रामसिंह के वंसज रामसिंगहोत कछवाह कहलाये]
08 - राव गोपालसिंह - राव गोपालसिंह का (जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से) राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव गोपालसिंह को चोमू और समोद जागीर मिली,राव गोपालसिंह की शादी करौली के ठाकुर की पुत्रि सत्यभामा के साथ हुयी थी।
09 - रूपसिंह - रूपसिंह का [रूपसिंह का जन्म गोड़ रानी की कोख से हुवा था, रूपसिंह को दौसा की जागीर मिली थी। रूपसिंह के वंसज रुपसिंगहोत कछवाह कहलाये] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। रूपसिंह की म्रत्यु 4 नवम्बर 1562 को हुयी थी।
11 - भीकाजी - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। [राव भीकाजी के वंसज भिकावत कछवाह कहलाये]
12 - साईंदासजी - राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव साईंदासजी के वंसज साईंदासोत कछवाह कहलाये]
13 - जगमालजी - राव जगमालजी का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, छटे पुत्र] राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। राव जगमालजी को दिग्गी और जोबनेर दो जागीर मिली थी, राव जगमालजी ने अपने पिता पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] से झगड़ा करके आमेर छिड़कर अमरकोट में रहने लगे, वंहाँ उन्होंने अमरकोट के राणा पहाड़सिंह की पुत्रि नेतकँवर से शादी करली। राव जगमालजी के पांच पुत्र हुए खंगारजी, सिंघदेवजी [सिंघदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ], सारंगदेवजी [सारंगदेवजी की 1554 में एक लड़ाई में म्रत्यु होगयी ], जयसिंह'रामचंदजी राणा पहाड़सिंह की म्रत्यु 1549.में हुयी ।
14 - पंचायणसिंह - पंचायणसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। पंचायणसिंह सामरिया ठिकाने के संस्थापक थे,पंचायणसिंह के वंसज पंचायणोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बढ़ कोटड़ी में सामिल है ।
15 - बलभद्रसिंह - बलभद्रसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। अचरोल ठिकाने के संस्थापक बलभद्रसिंह थे । बलभद्रसिंह के वंसज बालभदरोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है ।
16 - सुरतानसिंह - सुरतानसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। सुरतानसिंह सुरौठ ठिकाने के संस्थापक थे । जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । 17 - चतुर्भुजसिंह - चतुर्भुजसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से हुवा था, राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। चतुर्भुजसिंह बगरू ठिकाने के संस्थापक थे। चतुर्भुजसिंह के वंसज चतुर्भुजोत कछवाह कहलाये जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । ठाकुर चतुर्भुजसिंह के पुत्र हुवा कीरतसिंह जो चतुर्भुजसिंह के बाद बगरू के ठाकुर बने।
18 - कल्याणदास - कल्याणदास का जन्म सिसोदिया रानी की कोख से हुवा था, आठवाँ पुत्र), राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के पुत्र और आमेर के सातवें राजा चन्द्रसेनजी के पोते थे। कल्याणदास को कालवाड़ जागीर मिली, कल्याणदास के वंसज कल्याणोत कछवाह कहलाये। जो कछवाहों की बारह कोटड़ी में सामिल है । जिस में पदमपुरा , लोटवाड़ा और कालवाड़ आदि गांव सामिल है। कल्याणदास के तीन पुत्र हुए करमसिंह, मोहलदाससिंह, जगन्नाथसिंह
30 - भीमसिंह - भीमसिंह का जन्म रानी बालाबाई उर्फ अपूर्वाकंवर की कोख से,सबसे छोटा पुत्र भीमसिंह राजा पृथ्वीराजसिंह [प्रथम] के सबसे छोटे पुत्र थे और आमेर के सातवें राजा थे। चन्द्रसेनजी के पोते थे। आमेर के दसवें राजा भीमसिंह के वंसज भीमपोता कछवाह कहलातें हैं । भीमसिंह का आमेर पर शासनकाल 1534 से 1537 तक था । राजा भीमसिंह की म्रत्यु 22 जुलाई 1537 को हुयी थी। राजा भीमसिंह के दो पुत्र थे :- रतनसिंह,आसकरणसिंह ।
01 - रतनसिंह - भीमसिंह के पुत्र रतनसिंह आमेर के ग्यारवे राजा बने, रतनसिंह का आमेर पर शासनकाल 1537 से 1548 तक था । राजा रतनसिंह की म्रत्यु 15 मई 1948 को हुयी थी।
02 - आसकरणसिंह - भीमसिंह के पुत्र आसकरणसिंह के वंसज यानि राजा भीमसिंह के पोते, भीमपोता कछवाह कहलातें हैं । आसकरणसिंह के पुत्र हुवा राजसिंह जो नरवर चले गए थे तथा वंहा के राजा बने जिसके कारन इनके वंसजों को नरवर का कछवाह भी कहा जाता है। राजा राजसिंह [नरवर] के पुत्र हुवा रामदास जो नरवर के ठाकुर बनें।
राजा आसकरण जी के बारे में कुछ 'संक्षिप्त'
राजा आसकरण गोसाईं विट्ठलनाथ के दीक्षित शिष्य' एवं परम भगवदीय थे। वे ऐसे सौभाग्य शाली जीव थे, जिन्हेंल भगवान श्रीकृष्ण ने स्वएयं अपनी अनेक लीलाओं का साक्षात्का4र कराया था। राजा आसकरण नरवरगढ़ के राजा थे। राजा आसकरण मुग़ल बादशाह अकबर के समकालीन थे। राजा आसकरण को राज्यढ-सुख अधिक दिनों तक मोह में न रख सका। वे तो भगवान के सच्चेल भक्त थे। राजकार्य भतीजे को सौंपकर भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी वृन्दावन की ओर चल पड़े।
■ आसकरण उच्चर कोटि के रसिक भक्त थे। लीला रसामृत का पान ही उन्हें निश्चिन्त कर देता था। एक बार यशोदा रानी अपने बाल-गोपाल को दूध पिला रही थीं। सोने के कटोरे में औटा दूध लेकर ग्वालबालों की मण्डटली में खेलते हुए घनश्यांम को नन्दंरानी दूध पीने के लिये बार-बार बुला रही थीं। आसकरण के नयन इस पवित्र लीला का दर्शन करके धन्यल हो गये।
■ एक समय आसकरण को भगवान की शयन-लीला का विचित्र दर्शन हुआ। उन्होंदने देखा कि भगवान निकुंज में कोमल शय्या पर अपने नयनों में मीठी नींद भकर ऊँघ से रहे हैं। भगवान सो नहीं रहे हैं। भक्त का हृदय विकल हो उठा। उन्हों ने मीठी वाणी से उनकी मनुहार करनी आरम्भे की-
"तुम पौढ़ौ, हौं सेज बनाऊँ।
चापँ चरन, रहँ पायन तर, मधुरे स्व र केदारौ गाऊँ।।
"आसकरन" प्रभु मोहन नागर यह सुख स्यारम सदा हौं पाऊँ।।"
भगवान भक्त की प्रसन्न्ता के लिये सो गये। आसकरण उनके मुख की माधुरी में लीन हो गये। इसी तरह उन्हें सदा भगवान की लीला के दर्शन होते रहते थे। राजा आसकरण वास्त व में राजर्षि थे। वे भगवान के लीला गायक, रसिक कवि और अनन्य् भक्त थे।
02 - आसकरणसिंह - भीमसिंह के पुत्र आसकरणसिंह के वंसज यानि राजा भीमसिंह के पोते, भीमपोता कछवाह कहलातें हैं । आसकरणसिंह के पुत्र हुवा राजसिंह जो नरवर चले गए थे तथा वंहा के राजा बने जिसके कारन इनके वंसजों को नरवर का कछवाह भी कहा जाता है। राजा राजसिंह [नरवर] के पुत्र हुवा रामदास जो नरवर के ठाकुर बनें।
राजा आसकरण जी के बारे में कुछ 'संक्षिप्त'
राजा आसकरण गोसाईं विट्ठलनाथ के दीक्षित शिष्य' एवं परम भगवदीय थे। वे ऐसे सौभाग्य शाली जीव थे, जिन्हेंल भगवान श्रीकृष्ण ने स्वएयं अपनी अनेक लीलाओं का साक्षात्का4र कराया था। राजा आसकरण नरवरगढ़ के राजा थे। राजा आसकरण मुग़ल बादशाह अकबर के समकालीन थे। राजा आसकरण को राज्यढ-सुख अधिक दिनों तक मोह में न रख सका। वे तो भगवान के सच्चेल भक्त थे। राजकार्य भतीजे को सौंपकर भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी वृन्दावन की ओर चल पड़े।
■ आसकरण उच्चर कोटि के रसिक भक्त थे। लीला रसामृत का पान ही उन्हें निश्चिन्त कर देता था। एक बार यशोदा रानी अपने बाल-गोपाल को दूध पिला रही थीं। सोने के कटोरे में औटा दूध लेकर ग्वालबालों की मण्डटली में खेलते हुए घनश्यांम को नन्दंरानी दूध पीने के लिये बार-बार बुला रही थीं। आसकरण के नयन इस पवित्र लीला का दर्शन करके धन्यल हो गये।
■ एक समय आसकरण को भगवान की शयन-लीला का विचित्र दर्शन हुआ। उन्होंदने देखा कि भगवान निकुंज में कोमल शय्या पर अपने नयनों में मीठी नींद भकर ऊँघ से रहे हैं। भगवान सो नहीं रहे हैं। भक्त का हृदय विकल हो उठा। उन्हों ने मीठी वाणी से उनकी मनुहार करनी आरम्भे की-
"तुम पौढ़ौ, हौं सेज बनाऊँ।
चापँ चरन, रहँ पायन तर, मधुरे स्व र केदारौ गाऊँ।।
"आसकरन" प्रभु मोहन नागर यह सुख स्यारम सदा हौं पाऊँ।।"
भगवान भक्त की प्रसन्न्ता के लिये सो गये। आसकरण उनके मुख की माधुरी में लीन हो गये। इसी तरह उन्हें सदा भगवान की लीला के दर्शन होते रहते थे। राजा आसकरण वास्त व में राजर्षि थे। वे भगवान के लीला गायक, रसिक कवि और अनन्य् भक्त थे।
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।
निषाद शब्द को निषध करने का क्या औचित्य
ReplyDeleteहमारे पूर्वज आसकरण जी के वंशज हैं.करुप,काराकाट, ,रोहतास,बिहार
ReplyDeleteआपने इस आलेख के द्वारा जो जानकारी दिया है उसके लिए आपको कितना श्रम करना पड़ा होगा उसे मैं समझ सकता हूँ। अतः इस जानकारी प्रद सूचना के लिए धन्यवाद। 🙏 कृप्या कौशिक गोत्रीय बड़गायां परिवार के उद्भव, विकास और विस्तार पर आधारित आलेख भी उपलब्ध कराने की कोशिश करें। 🙏
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