नरुका कछवाह
राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह - शाखा - नरुका कछवाहनरुका कछवाह – राजा मेराज जी (मेहराज) के पुत्र नरु जी के वंशज नरुका कछवाह कहलाते हैं । मेराज जी, राजा बरसिँह जी के पुत्र व राजा उदयकरण जी के पोते थे।
नरुका कछवाहोँ की कई उप शाखाएँ हैं जो इस प्रकार हैं :-
दासावत नरुका - दासासिंह (दासा) के वंशज ।
लालावत नरुका - लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) के वंशज।
तेजावत नरुका - तेजसिंह (तेजा) के वंशज।
जेतावत नरुका - जेतसिंह (जेता) के वंशज।
रतनावत नरुका - दासासिंह (दासा) के पुत्र रतनसिंह (रतन जी) के वंशज।
[धय रहे … यह कछवाहोँ की उप शाखा रतनावत नरुका, रतनावत शेखावत खांप से बिलकुल अलग है।]
अलवर राज्य का संस्थापक प्रतापसिंह था जो आमेर नरेश महाराज उदयकर्ण के बड़े पुत्र बरसिंह की 15 वीं पीढ़ी में था। अलवर के राजा कछवाहा के राजवंश की लालावत नरुका की शाखा से सम्बन्धित थे।
बरसिंह के पुत्र मेराज ने आमेर पर अधिकार कर लिया था, लेकिन इसका अधिकार अधिक समय तक नहीं रह सका। मेराज ने माहाण तालाब का निर्माण करवाया। मेराज के पुत्र नरु ने भी कुछ समय तक आमेर को अपने अधिकर में रखा, लेकिन आमेर के राजा चन्द्र सेन ने नरु को आमेर से मार भगाया। अत: वह निराश होकर अपनी जागीर मौजाबाद में चला गया। नरु बड़ा प्रतापी राजा था, जिससे नरुका कछवाह (नरुवंश का) प्रार्दुभाव हुआ। नरु के वंशज नरुका नाम से पुकारे जाने लगे। नरु के पाँच पुत्र थे :-
01 - लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत)
02 - दासासिंह (दासा)
03 - तेजसिंह (तेजा)
दासावत नरुका - दासासिंह (दासा) के वंशज ।
लालावत नरुका - लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) के वंशज।
तेजावत नरुका - तेजसिंह (तेजा) के वंशज।
जेतावत नरुका - जेतसिंह (जेता) के वंशज।
रतनावत नरुका - दासासिंह (दासा) के पुत्र रतनसिंह (रतन जी) के वंशज।
[धय रहे … यह कछवाहोँ की उप शाखा रतनावत नरुका, रतनावत शेखावत खांप से बिलकुल अलग है।]
अलवर राज्य का संस्थापक प्रतापसिंह था जो आमेर नरेश महाराज उदयकर्ण के बड़े पुत्र बरसिंह की 15 वीं पीढ़ी में था। अलवर के राजा कछवाहा के राजवंश की लालावत नरुका की शाखा से सम्बन्धित थे।
बरसिंह के पुत्र मेराज ने आमेर पर अधिकार कर लिया था, लेकिन इसका अधिकार अधिक समय तक नहीं रह सका। मेराज ने माहाण तालाब का निर्माण करवाया। मेराज के पुत्र नरु ने भी कुछ समय तक आमेर को अपने अधिकर में रखा, लेकिन आमेर के राजा चन्द्र सेन ने नरु को आमेर से मार भगाया। अत: वह निराश होकर अपनी जागीर मौजाबाद में चला गया। नरु बड़ा प्रतापी राजा था, जिससे नरुका कछवाह (नरुवंश का) प्रार्दुभाव हुआ। नरु के वंशज नरुका नाम से पुकारे जाने लगे। नरु के पाँच पुत्र थे :-
01 - लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत)
02 - दासासिंह (दासा)
03 - तेजसिंह (तेजा)
04 - जेतसिंह (जेता) 05 - रतनसिंह (रतन जी)
01) लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) - लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) के वंशज जो लालावत नरुका कहलाते थे, अलवर राज्य के शासक थे। लालासिंह (लाला, लालावत) जो कि नरु का बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आमेर पर फिर से अधिकार करने से मना कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके पिता नरु ने उसे कमजोर समझा और उसने अपने दूसरे नम्बर के पुत्र दासासिंह (दासा) को बहादुर एवं वीर समझते हुए, मौजाबाद का स्वामी बना दिया तथा लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) को केवल 12 गाँवों सहित झाक का जागीरदार बना दिया।
चूँकि लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) कछवाहा वंश के आमेर के राजा भारमल से कोई झगड़ा नहीं करना चाहता था, तब इसका पता भारमल को लगा तो लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) से बहुत खुश हुआ और प्रसन्न होकर लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) को राव का खिताब और निशान दिया।
02) दासासिंह (दासा) - दासा के वंशज दासावत नरुका कहलाते थे और ये दासावत नरुका जयपुर के उनियारा, वाला व अलवर में जावली गढ़ो में निवास करते थे।
03) तेजसिंह (तेजा) - जिसके वंशज तेजावत नरुका कहलाये, जो जयपुर व अलवर में हादीहेड़ा में निवास करते थे।
04) जेतसिंह (जेता) - इसके वंश जेतावत नरुका कहलाते थे। ये गोविन्दगढ़ तथा पीपलखेड़ा में निवास करते थे।उदयसिंह - लालासिंह (लाला, लालावत) का बेटा उदयसिंह राजा भारमल की हरावल फौज का अफसर गिना जाता था। लाड़सिंह उदयसिंह के पुत्र थे।
लाड़सिंह - उदयसिंह के पुत्र लाड़सिंह जिसकी गिनती आमेर के मिर्जा राजा मानसिंह के बड़े-बड़े सरदारों में की जाती थी बादशाह अकबर ने लाड़सिंह को “खान” की उपाधि से विभूषित किया था। इसलिए “लाड़ खाँ” के नाम से पुकारा जाता था। लाड़ खाँ का पुत्र फतेहसिंह था।
फतेहसिंह - “लाड़ खाँ” के पुत्र फतेहसिंह के चार पुत्र थे।
01 - कल्याण सिंह
01) लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) - लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) के वंशज जो लालावत नरुका कहलाते थे, अलवर राज्य के शासक थे। लालासिंह (लाला, लालावत) जो कि नरु का बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आमेर पर फिर से अधिकार करने से मना कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके पिता नरु ने उसे कमजोर समझा और उसने अपने दूसरे नम्बर के पुत्र दासासिंह (दासा) को बहादुर एवं वीर समझते हुए, मौजाबाद का स्वामी बना दिया तथा लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) को केवल 12 गाँवों सहित झाक का जागीरदार बना दिया।
चूँकि लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) कछवाहा वंश के आमेर के राजा भारमल से कोई झगड़ा नहीं करना चाहता था, तब इसका पता भारमल को लगा तो लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) से बहुत खुश हुआ और प्रसन्न होकर लालासिंह (राब लाला, लाला, लालावत) को राव का खिताब और निशान दिया।
02) दासासिंह (दासा) - दासा के वंशज दासावत नरुका कहलाते थे और ये दासावत नरुका जयपुर के उनियारा, वाला व अलवर में जावली गढ़ो में निवास करते थे।
03) तेजसिंह (तेजा) - जिसके वंशज तेजावत नरुका कहलाये, जो जयपुर व अलवर में हादीहेड़ा में निवास करते थे।
04) जेतसिंह (जेता) - इसके वंश जेतावत नरुका कहलाते थे। ये गोविन्दगढ़ तथा पीपलखेड़ा में निवास करते थे।उदयसिंह - लालासिंह (लाला, लालावत) का बेटा उदयसिंह राजा भारमल की हरावल फौज का अफसर गिना जाता था। लाड़सिंह उदयसिंह के पुत्र थे।
लाड़सिंह - उदयसिंह के पुत्र लाड़सिंह जिसकी गिनती आमेर के मिर्जा राजा मानसिंह के बड़े-बड़े सरदारों में की जाती थी बादशाह अकबर ने लाड़सिंह को “खान” की उपाधि से विभूषित किया था। इसलिए “लाड़ खाँ” के नाम से पुकारा जाता था। लाड़ खाँ का पुत्र फतेहसिंह था।
फतेहसिंह - “लाड़ खाँ” के पुत्र फतेहसिंह के चार पुत्र थे।
01 - कल्याण सिंह
02 - कर्ण सिंह
03 - अक्षय सिंह
04 - रणछोड़दास
कल्याण सिंह - फतेहसिंह का पुत्र कल्याण सिंह पहला व्यक्ति था, जिसने प्रथम बार अलवर के इलाके को विजित किया। कल्याण सिंह ने मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र कीर्ति सिंह के साथ कामा के विद्रोह का दमन किया। इस पर आमेर के नरेश रामसिंह ने कल्याण सिंह की सेवाओं से प्रसन्न होकर माचेड़ी गाँव जागीर में दे दिया। जिससे राजगढ़ माचेड़ी व आधा राजपुर यानि कुल मिलाकर ढ़ाई गाँव की जागीर रामसिंह ने कल्याण सिंह को 25 दिसम्बर 1671 को प्रदान की। कल्याण सिंह के 6 पुत्र थे। जिनमें से पाँच जीवित रहे।
01 - उग्रसिंह - माचेड़ी पर जागीरदार थे।
02 - श्यामसिंह - पारा में जागीरदार थे।
03 - जोधसिंह - पाई में जागीरदार थे।
04 - अमरसिंह - खोरा में जागीरदार थे।
05 - ईश्वरी सिंह - चालवा में जागीरदार रहे।
इन पाँचों के पास कुल 84 घोड़े की जागीर थी।
तेजसिंह - उग्रसिंह के बाद तेजसिंह गद्दी पर बैठा। तेजसिंह, कल्याण सिंह के पोते थे। तेजसिंह के दो पुत्र थे:-
01 - जोखारसिंह - बड़ा पुत्र जोखारसिंह माचेड़ी गांव का पाटवी सरदार बना ।
02 - जालिमसिंह - दूसरा पुत्र जालिमसिंह जिसको बीजावाड़ गांव की जागीर मिली।
जोरावर सिंह की मृत्यु के बाद हाथी सिंह व मुकुन्द सिंह माचेड़ी के जागीरदार बने।
मोहब्बत सिंह - हाथी सिंह व मुकुन्द सिंह के बाद जोरावर सिंह का पुत्र मोहब्बत सिंह सन् 1735 में माचेड़ी की गद्दी पर बैठा। मोहब्बत सिंह के तीन रानियाँ थी।
प्रताप सिंह - 1 जून, 1740 रविवार को मौहब्बत सिंह की रानि बख्त कवार ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया। इसके पश्चात् सन् 1756 में मौहब्बत सिंह बखाड़े के युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। राजगढ़ में उसकी विशाल छतरी बनी हुई है। वर्तमान में राजगढ़ भारत के राज्य राजस्थान के अलवर जिले का एक नगरपालिका क्षेत्र एवं नगर है।मौहब्बत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र प्रतापसिंह ने 25 दिसम्बर, 1775 ई. को अलवर राज्य की स्थापना की।
25 - राजा बरसिँह जी - उदयकरण जी के पुत्र थे।
26 - राजा मेराज जी (मेहराज) - राजा बरसिँह जी के पुत्र थे।
27 - नरु जी - राजा मेराज जी (मेहराज) के पुत्र थे।राजा मेराज जी (मेहराज) के पुत्र नरु जी के वंशज नरुका कछवाह कहलाते हैं । मेराज जी, राजा बरसिँह जी के पुत्र व राजा उदयकरण जी के पोते थे।
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
03 - अक्षय सिंह
04 - रणछोड़दास
कल्याण सिंह - फतेहसिंह का पुत्र कल्याण सिंह पहला व्यक्ति था, जिसने प्रथम बार अलवर के इलाके को विजित किया। कल्याण सिंह ने मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र कीर्ति सिंह के साथ कामा के विद्रोह का दमन किया। इस पर आमेर के नरेश रामसिंह ने कल्याण सिंह की सेवाओं से प्रसन्न होकर माचेड़ी गाँव जागीर में दे दिया। जिससे राजगढ़ माचेड़ी व आधा राजपुर यानि कुल मिलाकर ढ़ाई गाँव की जागीर रामसिंह ने कल्याण सिंह को 25 दिसम्बर 1671 को प्रदान की। कल्याण सिंह के 6 पुत्र थे। जिनमें से पाँच जीवित रहे।
01 - उग्रसिंह - माचेड़ी पर जागीरदार थे।
02 - श्यामसिंह - पारा में जागीरदार थे।
03 - जोधसिंह - पाई में जागीरदार थे।
04 - अमरसिंह - खोरा में जागीरदार थे।
05 - ईश्वरी सिंह - चालवा में जागीरदार रहे।
इन पाँचों के पास कुल 84 घोड़े की जागीर थी।
तेजसिंह - उग्रसिंह के बाद तेजसिंह गद्दी पर बैठा। तेजसिंह, कल्याण सिंह के पोते थे। तेजसिंह के दो पुत्र थे:-
01 - जोखारसिंह - बड़ा पुत्र जोखारसिंह माचेड़ी गांव का पाटवी सरदार बना ।
02 - जालिमसिंह - दूसरा पुत्र जालिमसिंह जिसको बीजावाड़ गांव की जागीर मिली।
जोरावर सिंह की मृत्यु के बाद हाथी सिंह व मुकुन्द सिंह माचेड़ी के जागीरदार बने।
मोहब्बत सिंह - हाथी सिंह व मुकुन्द सिंह के बाद जोरावर सिंह का पुत्र मोहब्बत सिंह सन् 1735 में माचेड़ी की गद्दी पर बैठा। मोहब्बत सिंह के तीन रानियाँ थी।
प्रताप सिंह - 1 जून, 1740 रविवार को मौहब्बत सिंह की रानि बख्त कवार ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया। इसके पश्चात् सन् 1756 में मौहब्बत सिंह बखाड़े के युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। राजगढ़ में उसकी विशाल छतरी बनी हुई है। वर्तमान में राजगढ़ भारत के राज्य राजस्थान के अलवर जिले का एक नगरपालिका क्षेत्र एवं नगर है।मौहब्बत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र प्रतापसिंह ने 25 दिसम्बर, 1775 ई. को अलवर राज्य की स्थापना की।
नरुका कछवाहोँ का पीढी क्रम इस प्रकार है -:
नरु जी - मेराज जी (मेहराज) - बरसिँह जी (बरसिँग देवजी) - उदयकरण जी - जुणसी जी (जुणसी, जानसी, जुणसीदेव जी, जसीदेव) - जी - कुन्तलदेव जी – किलहन देवजी (कील्हणदेव,खिलन्देव) - राज देवजी - राव बयालजी (बालोजी) - मलैसी देव - पुजना देव (पाजून, पज्जूणा) – जान्ददेव - हुन देव - कांकल देव - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढ देव (सोरा सिंह) - इश्वरदास (ईशदेव जी)
ख्यात अनुसार नरुका कछवाहोँ का पीढी क्रम ईस प्रकार है –:
01 - भगवान श्री राम - भगवान श्री राम के बाद कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश का इतिहास इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म ब्रह्माजी की 67वीँ पिढी मेँ और ब्रह्माजी की 68वीँ पिढी मेँ लव व कुश का जन्म हुआ। भगवान श्री राम के दो पुत्र थे –
01 - लव
02 - कुश
01 - किर्तिराज (बड़ा पुत्र) - किर्तिराज को ग्वालियर का राज्य मिला था।
02 - सुमित्र (छोटा पुत्र) - सुमित्र को नरवर का राज्य मिला था। नरवार किला, शिवपुरी के बाहरी इलाके में शहर से 42 किमी. की दूरी पर स्थित है जो काली नदी के पूर्व में स्थित है। नरवर शहर का ऐतिहासिक महत्व भी है और इसे 12 वीं सदी तक नालापुरा के नाम से जाना जाता था। इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं। इस नरवर राज्य को ‘निषाद राज्य भी कहते थे, जहां राजा वीरसेन का शासन था। उनके ही पुत्र का नाम राजा नल था। राजा नल का विवाह दमयंती से हुआ था। बाद में चौपड़ के खेल में राजा नल ने अपनी सत्ता को ही दांव पर लगा दिया था और सब कुछ हार गए। इसके बाद उन्हें अपना राज्य छोड़कर निषाद देश से जाना पड़ा था। 12वीं शताब्दी के बाद नरवर पर क्रमश: कछवाहा, परिहार और तोमर राजपूतों का अधिकार रहा, जिसके बाद 16वीं शताब्दी में मुग़लों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। मानसिंह तोमर (1486-1516 ई.) और मृगनयनी की प्रसिद्ध प्रेम कथा से नरवर का सम्बन्ध बताया जाता है।
11 - सुमित्र - मंगल राज का छोटा पुत्र सुमित्र था।
12 - ईशदेव - सुमित्र के ईशदेव नामक पुत्र हुआ।
13 - सोढदेव - इश्वरदास (ईशदेव जी) के सोढ देव (सोरा सिंह) नामक पुत्र हुआ
14 - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढदेव जी के दुलहराय जी (ढोलाराय) नामक पुत्र हुआ । दुलहराय जी (ढोलाराय) (1006-36) आमेर (जयपुर) के शासक थे। दुलहराय जी (ढोलाराय) के 3 पुत्र हुये:-
01 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
02 - डेलण जी
03 - वीकलदेव जी
18 – पंञ्जावन - जान्ददेव के पंञ्जावन (पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) नामक पुत्र हुआ।पंञ्जावन (पुजना देव,पाजून, पज्जूणा) (1070 – 1084) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
19 - मलैसी देव - राजा मलैसिंह देव पंञ्जावन (पुंजदेव, पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) का पुत्र था, तथा मलैसिंह दौसा का सातवाँ राजा था मलैसी देव दौसा के बाद राजा मलैसिंह देव 1084 से 1146 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। भारतीय ईतीहास में मलैसी को मलैसी, मलैसीजी, मलैसिंहजी आदी नामों से भी जाना एंव पहचाना जाता है, मगर इन का असली नाम मलैसी देव था। जैसा कि सभी को मालुम है सुंन्दरता के वंश में होकर (मलैसीजी मलैसिंहजी) ने बहुतसी शादीयाँ करी थी। जिन में राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में करी थी इन सब की जानकारी बही भाटों की बही एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान तो खुलकर बताती है मगर इतिहास के पन्ने इस विषय पर मौन हैं।
21 - राज देवजी - राव बयालदेव के पुत्र राज देवजी। राज देवजी (1179 – 1216) आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा राव बयालजी (बालोजी) का पुत्र राजा देव जी दौसा का नौँवा राजा बना जिसका कार्यकाल 1179-1216 तक। राजा देव जी के ग्यारह पुत्र थे -:02 - कुश
रामायण कालीन महर्षि वाल्मिकी की महान धरा एवं माता सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म स्थल कहे जाने वाला धार्मिक स्थल तुरतुरिया है। - लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
- राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्म भूमि माना जाता है।- रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था। राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बर्गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह (कछवाह) राजपूतों का वंश चला। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लाहौर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं। राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा ।
02 – कुश - भगवान श्री राम के पुत्र लव, कुश हुये।
03 - अतिथि - कुश के पुत्र अतिथि हुये।
04 - वीरसेन (निषध) - वीरसेन जो कि निषध देश के एक राजा थे। भारशिव राजाओं में वीरसेन सबसे प्रसिद्ध राजा था। कुषाणों को परास्त करके अश्वमेध यज्ञों का सम्पादन उसी ने किया था। ध्रुवसंधि की 2 रानियाँ थीं। पहली पत्नी महारानी मनोरमा कलिंग के राजा वीरसेन की पुत्री थी । वीरसेन (निषध) के एक पुत्री व दो पुत्र हुए थे:-
01- मदनसेन (मदनादित्य) – (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) सुकेत के 22 वेँ शासक राजा मदनसेन ने बल्ह के लोहारा नामक स्थान मे सुकेत की राजधानी स्थापित की। राजा मदनसेन के पुत्र हुए कमसेन जिनके नाम पर कामाख्या नगरी का नाम कामावती पुरी रखा गया।
02 - राजा नल - (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) निषध देश पुराणानुसार एक देश का प्राचीन नाम जो विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित था।
03 - मनोरमा (पुत्री) - अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती । मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और लीलावती के शत्रुजित ।माठर वंश के बाद कलिंग में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया था। माठर वंश के बाद500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। वर्तमान उड़ीसा राज्य को प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य , कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि भी नामों से जाना जाता था। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह वंश, मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया।
05 - राजा नल - (राजा वीरसेन का पुत्र राजा नल) निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र, राजा नल का विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के साथ हुआ था। नल-दमयंती - विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन के पुत्र नल राजा नल स्वयं इक्ष्वाकु वंशीय थे। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) जिसे मौर्य काल में स्वतंत्र आटविक जनपद क्षेत्र कहा गया इसे समकालीन कतिपय ग्रंथों में महावन भी उल्लेखित किया गया है। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र में अनेक नाम नल से जुडे हुए हैं जैसे - नलमपल्ली, नलगोंडा, नलवाड़, नलपावण्ड, नड़पल्ली, नीलवाया, नेलाकांकेर, नेलचेर, नेलसागर आदि।महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र पर नलवंश के राजा व्याघ्रराज (350-400 ई.) की सत्ता का उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशास्ति से मिलता है। व्याघ्रराज के बाद, व्याघ्रराज के पुत्र वाराहराज (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। वाराहराज का शासनकाल वाकाटकों से जूझता हुआ ही गुजरा। राजा नरेन्द्र सेन ने उन्हें अपनी तलवार को म्यान में रखने के कम ही मौके दिये। वाकाटकों ने इसी दौरान नलों पर एक बड़ी विजय हासिल करते हुए महाकांतार का कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया था। वाराहराज के बाद, वाराहराज के पुत्र भवदत्त वर्मन (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। भवदत्त वर्मन के देहावसान के बाद के पश्चात उसका पुत्र अर्थपति भट्टारक (460-475 ई.) राजसिंहासन पर बैठे। अर्थपति की मृत्यु के पश्चात नलों को कडे संघर्ष से गुजरना पडा जिसकी कमान संभाली उनके भाई स्कंदवर्मन (475-500 ई.) नें जिसे विरासत में सियासत प्राप्त हुई थी। इस समय तक नलों की स्थिति क्षीण होने लगी थी जिसका लाभ उठाते हुए वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन नें पुन: महाकांतार क्षेत्र के बडे हिस्सों पर पाँव जमा लिये। नरेन्द्र सेन के पश्चात उसके पुत्र पृथ्वीषेण द्वितीय (460-480 ई.) नें भी नलों के साथ संघर्ष जारी रखा। अर्थपति भटटारक को नन्दिवर्धन छोडना पडा तथा वह नलों की पुरानी राजधानी पुष्करी लौट आया। स्कंदवर्मन ने शक्ति संचय किया तथा तत्कालीन वाकाटक शासक पृथ्वीषेण द्वितीय को परास्त कर नल शासन में पुन: प्राण प्रतिष्ठा की। स्कंदवर्मन ने नष्ट पुष्करी नगर को पुन: बसाया अल्पकाल में ही जो शक्ति व सामर्थ स्कन्दवर्मन नें एकत्रित कर लिया था उसने वाकाटकों के अस्तित्व को ही लगभग मिटा कर रख दिया । के बाद नल शासन व्यवस्था के आधीन कई माण्डलिक राजा थे। उनके पुत्र पृथ्वीव्याघ्र (740-765 ई.) नें राज्य विस्तार करते हुए नेल्लोर क्षेत्र के तटीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। यह उल्लेख मिलता है कि उन्होंनें अपने समय में अश्वमेध यज्ञ भी किया। पृथ्वीव्याघ्र के पश्चात के शासक कौन थे इस पर अभी इतिहास का मौन नहीं टूट सका है। नल-दम्यंति के पुत्र-पुत्री इन्द्रसेना व इन्द्रसेन थे।
04 - वीरसेन (निषध) - वीरसेन जो कि निषध देश के एक राजा थे। भारशिव राजाओं में वीरसेन सबसे प्रसिद्ध राजा था। कुषाणों को परास्त करके अश्वमेध यज्ञों का सम्पादन उसी ने किया था। ध्रुवसंधि की 2 रानियाँ थीं। पहली पत्नी महारानी मनोरमा कलिंग के राजा वीरसेन की पुत्री थी । वीरसेन (निषध) के एक पुत्री व दो पुत्र हुए थे:-
01- मदनसेन (मदनादित्य) – (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) सुकेत के 22 वेँ शासक राजा मदनसेन ने बल्ह के लोहारा नामक स्थान मे सुकेत की राजधानी स्थापित की। राजा मदनसेन के पुत्र हुए कमसेन जिनके नाम पर कामाख्या नगरी का नाम कामावती पुरी रखा गया।
02 - राजा नल - (निषध देश के राजा वीरसेन का पुत्र) निषध देश पुराणानुसार एक देश का प्राचीन नाम जो विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित था।
03 - मनोरमा (पुत्री) - अयोध्या में भगवान राम से कुछ पीढ़ियों बाद ध्रुवसंधि नामक राजा हुए । उनकी दो स्त्रियां थीं । पट्टमहिषी थी कलिंगराज वीरसेन की पुत्री मनोरमा और छोटी रानी थी उज्जयिनी नरेश युधाजित की पुत्री लीलावती । मनोरमा के पुत्र हुए सुदर्शन और लीलावती के शत्रुजित ।माठर वंश के बाद कलिंग में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया था। माठर वंश के बाद500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। वर्तमान उड़ीसा राज्य को प्राचीन काल से मध्यकाल तक ओडिशा राज्य , कलिंग, उत्कल, उत्करात, ओड्र, ओद्र, ओड्रदेश, ओड, ओड्रराष्ट्र, त्रिकलिंग, दक्षिण कोशल, कंगोद, तोषाली, छेदि तथा मत्स आदि भी नामों से जाना जाता था। नल वंश के दौरान भगवान विष्णु को अधिक पूजा जाता था इसलिए नल वंश के राजा व विष्णुपूजक स्कन्दवर्मन ने ओडिशा में पोडागोड़ा स्थान पर विष्णुविहार का निर्माण करवाया। नल वंश के बाद विग्रह वंश, मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया।
05 - राजा नल - (राजा वीरसेन का पुत्र राजा नल) निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र, राजा नल का विवाह विदर्भ देश के राजा भीमसेन की पुत्री दमयंती के साथ हुआ था। नल-दमयंती - विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री दमयंती और निषध के राजा वीरसेन के पुत्र नल राजा नल स्वयं इक्ष्वाकु वंशीय थे। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) जिसे मौर्य काल में स्वतंत्र आटविक जनपद क्षेत्र कहा गया इसे समकालीन कतिपय ग्रंथों में महावन भी उल्लेखित किया गया है। महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र में अनेक नाम नल से जुडे हुए हैं जैसे - नलमपल्ली, नलगोंडा, नलवाड़, नलपावण्ड, नड़पल्ली, नीलवाया, नेलाकांकेर, नेलचेर, नेलसागर आदि।महाकांतार (प्राचीन बस्तर) क्षेत्र पर नलवंश के राजा व्याघ्रराज (350-400 ई.) की सत्ता का उल्लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशास्ति से मिलता है। व्याघ्रराज के बाद, व्याघ्रराज के पुत्र वाराहराज (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। वाराहराज का शासनकाल वाकाटकों से जूझता हुआ ही गुजरा। राजा नरेन्द्र सेन ने उन्हें अपनी तलवार को म्यान में रखने के कम ही मौके दिये। वाकाटकों ने इसी दौरान नलों पर एक बड़ी विजय हासिल करते हुए महाकांतार का कुछ क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया था। वाराहराज के बाद, वाराहराज के पुत्र भवदत्त वर्मन (400-440 ई.) महाकांतार क्षेत्र के राजा हुए। भवदत्त वर्मन के देहावसान के बाद के पश्चात उसका पुत्र अर्थपति भट्टारक (460-475 ई.) राजसिंहासन पर बैठे। अर्थपति की मृत्यु के पश्चात नलों को कडे संघर्ष से गुजरना पडा जिसकी कमान संभाली उनके भाई स्कंदवर्मन (475-500 ई.) नें जिसे विरासत में सियासत प्राप्त हुई थी। इस समय तक नलों की स्थिति क्षीण होने लगी थी जिसका लाभ उठाते हुए वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन नें पुन: महाकांतार क्षेत्र के बडे हिस्सों पर पाँव जमा लिये। नरेन्द्र सेन के पश्चात उसके पुत्र पृथ्वीषेण द्वितीय (460-480 ई.) नें भी नलों के साथ संघर्ष जारी रखा। अर्थपति भटटारक को नन्दिवर्धन छोडना पडा तथा वह नलों की पुरानी राजधानी पुष्करी लौट आया। स्कंदवर्मन ने शक्ति संचय किया तथा तत्कालीन वाकाटक शासक पृथ्वीषेण द्वितीय को परास्त कर नल शासन में पुन: प्राण प्रतिष्ठा की। स्कंदवर्मन ने नष्ट पुष्करी नगर को पुन: बसाया अल्पकाल में ही जो शक्ति व सामर्थ स्कन्दवर्मन नें एकत्रित कर लिया था उसने वाकाटकों के अस्तित्व को ही लगभग मिटा कर रख दिया । के बाद नल शासन व्यवस्था के आधीन कई माण्डलिक राजा थे। उनके पुत्र पृथ्वीव्याघ्र (740-765 ई.) नें राज्य विस्तार करते हुए नेल्लोर क्षेत्र के तटीय क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। यह उल्लेख मिलता है कि उन्होंनें अपने समय में अश्वमेध यज्ञ भी किया। पृथ्वीव्याघ्र के पश्चात के शासक कौन थे इस पर अभी इतिहास का मौन नहीं टूट सका है। नल-दम्यंति के पुत्र-पुत्री इन्द्रसेना व इन्द्रसेन थे।
ब्रह्माजी की 71वीँ पिढी मेँ जन्में राजा नल से इतिहास में प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी राजपूतों की एक अलग शाखा चली जो कछवाह के नाम से विख्यात है ।
06– ढोला - राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था। जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है ।
07 – लक्ष्मण - ढोला के लक्ष्मण नामक पुत्र हुआ।-
08 - भानु - लक्ष्मण के भानु नामक पुत्र हुआ।
06– ढोला - राजा नल-दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था। जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है ।
07 – लक्ष्मण - ढोला के लक्ष्मण नामक पुत्र हुआ।-
08 - भानु - लक्ष्मण के भानु नामक पुत्र हुआ।
09 – बज्रदामा - भानु के बज्रदामा नामक पुत्र हुआ, भानु के पुत्र परम प्रतापी महाराजा धिराज बज्र्दामा हुवा जिस ने खोई हुई कछवाह राज्यलक्ष्मी का पुनः उद्धारकर ग्वालियर दुर्ग प्रतिहारों से पुनः जित लिया।
10 - मंगल राज - बज्रदामा के मंगल राज नामक पुत्र हुआ। बज्र्दामा के पुत्र मंगल राज हुवा जिसने पंजाब के मैदान में महमूद गजनवी के विरुद्ध उतरी भारत के राजाओं के संघ के साथ युद्ध कर अपनी वीरता प्रदर्शित की थी। मंगल राज के मंगल राज के 2 पुत्र हुए:-01 - किर्तिराज (बड़ा पुत्र) - किर्तिराज को ग्वालियर का राज्य मिला था।
02 - सुमित्र (छोटा पुत्र) - सुमित्र को नरवर का राज्य मिला था। नरवार किला, शिवपुरी के बाहरी इलाके में शहर से 42 किमी. की दूरी पर स्थित है जो काली नदी के पूर्व में स्थित है। नरवर शहर का ऐतिहासिक महत्व भी है और इसे 12 वीं सदी तक नालापुरा के नाम से जाना जाता था। इस महल का नाम राजा नल के नाम पर रखा गया है जिनके और दमयंती की प्रेमगाथाएं महाकाव्य महाभारत में पढ़ने को मिलती हैं। इस नरवर राज्य को ‘निषाद राज्य भी कहते थे, जहां राजा वीरसेन का शासन था। उनके ही पुत्र का नाम राजा नल था। राजा नल का विवाह दमयंती से हुआ था। बाद में चौपड़ के खेल में राजा नल ने अपनी सत्ता को ही दांव पर लगा दिया था और सब कुछ हार गए। इसके बाद उन्हें अपना राज्य छोड़कर निषाद देश से जाना पड़ा था। 12वीं शताब्दी के बाद नरवर पर क्रमश: कछवाहा, परिहार और तोमर राजपूतों का अधिकार रहा, जिसके बाद 16वीं शताब्दी में मुग़लों ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया। मानसिंह तोमर (1486-1516 ई.) और मृगनयनी की प्रसिद्ध प्रेम कथा से नरवर का सम्बन्ध बताया जाता है।
11 - सुमित्र - मंगल राज का छोटा पुत्र सुमित्र था।
12 - ईशदेव - सुमित्र के ईशदेव नामक पुत्र हुआ।
13 - सोढदेव - इश्वरदास (ईशदेव जी) के सोढ देव (सोरा सिंह) नामक पुत्र हुआ
14 - दुलहराय जी (ढोलाराय) - सोढदेव जी के दुलहराय जी (ढोलाराय) नामक पुत्र हुआ । दुलहराय जी (ढोलाराय) (1006-36) आमेर (जयपुर) के शासक थे। दुलहराय जी (ढोलाराय) के 3 पुत्र हुये:-
01 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
02 - डेलण जी
03 - वीकलदेव जी
15 - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) - (1036-38) आमेर (जयपुर) के शासक थे। कॉकिलदेव (काँखल जी, कांकल देव) के पांच पुत्र हुए:-
01 - अलघराय जी
17 - जान्ददेव - हुन देव के जान्ददेव नामक पुत्र हुआ। जान्ददेव (1053 – 1070) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
02 - गेलन जी
03 - रालण जी
04 - डेलण जी
04 - डेलण जी
05 - हुन देव
16 - हुन देव - कांकल देव (काँखल देव) के हुन देव नामक पुत्र हुआ।
हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
हुन देव (1038-53) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
18 – पंञ्जावन - जान्ददेव के पंञ्जावन (पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) नामक पुत्र हुआ।पंञ्जावन (पुजना देव,पाजून, पज्जूणा) (1070 – 1084) आमेर (जयपुर) के शासक थे।
19 - मलैसी देव - राजा मलैसिंह देव पंञ्जावन (पुंजदेव, पुजना देव, पाजून, पज्जूणा) का पुत्र था, तथा मलैसिंह दौसा का सातवाँ राजा था मलैसी देव दौसा के बाद राजा मलैसिंह देव 1084 से 1146 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। भारतीय ईतीहास में मलैसी को मलैसी, मलैसीजी, मलैसिंहजी आदी नामों से भी जाना एंव पहचाना जाता है, मगर इन का असली नाम मलैसी देव था। जैसा कि सभी को मालुम है सुंन्दरता के वंश में होकर (मलैसीजी मलैसिंहजी) ने बहुतसी शादीयाँ करी थी। जिन में राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में करी थी इन सब की जानकारी बही भाटों की बही एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान तो खुलकर बताती है मगर इतिहास के पन्ने इस विषय पर मौन हैं।
मलैसी देव के बहुत से पुत्र थे मगर हमें इनमें से सात का तो हर जगह ब्योरा मिल जाता है बाकी पर इतीहास अपनी चुपी नहीं तोड़ता है । मगर हम जागा और जातीगत ईतीहास लिखने वाले बही-भीटों की बही के प्रमाण एंव समाज के बुजुर्गो की जुबान पर जायें तो पता चलता है राजा मलैसी देव कि सन्तानोँ मेँ शुद् रजपुती खुन दो पुत्रोँ मेँ था राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी में। राव बयालजी (बालोजी) व जैतलजी के अलावा बकी पाँच ने कसी कारण वंश दूसरी जाती की लड़की से शादी की जीससे एक अलग- अलग जातीयाँ निकली। मलैसी देव ने राजपूत खानदान से बाहर अन्य खानदान एंव अन्य जातीयों में शादीयाँ करी थी इन सब अन्य जातीयों से पुत्र -:
01 - तोलाजी - टाक दर्जी छींपा
02 - बाघाजी - रावत बनिया
03 - भाण जी - डाई गुजर
04 - नरसी जी - निठारवाल जाट
05 - रतना जी - सोली सुनार,आमेरा नाई
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से एक अलग जाती बनगयी है
02 - बाघाजी - रावत बनिया
03 - भाण जी - डाई गुजर
04 - नरसी जी - निठारवाल जाट
05 - रतना जी - सोली सुनार,आमेरा नाई
उपरोंक्त ये सभी पाँचो पुत्र अपने व्यवसाय में लग गये जिनकी आज राजपूतों से एक अलग जाती बनगयी है
06 - जैतल जी (जीतल जी) - जैतल जी (जीतल जी) (1146 – 1179) आमेर (जयपुर) के शासक थे ।
07 - राव बयालदेव
20 - राव बयालदेव - राजा मलैसिंह देव के पुत्र राव बयालदेव ।
01 - बीजलदेव जी
02 - किलहनदेव जी
03 - साँवतसिँह जी
05 - सिहा जी
06 - बिकसी [ बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी ]
07 - पाला जी (पिला जी)
08 - भोजराज जी
02 - किलहनदेव जी
03 - साँवतसिँह जी
05 - सिहा जी
06 - बिकसी [ बिकासिँह जी, बिकसिँह जी विक्रमसी ]
07 - पाला जी (पिला जी)
08 - भोजराज जी
09 - राजघरजी [राढरजी]
10 - दशरथ जी
11 - राजा कुन्तलदेव जी
10 - दशरथ जी
11 - राजा कुन्तलदेव जी
22 - कुन्तलदेव जी - कुन्तलदेव जी 1276 से 1317 तक आमेर (जयपुर) के शासक थे। राजा कुन्तलदेव जी के ग्यारह पुत्र थे -:
23 - जोणसी - राजा जोणसी कुन्तलदेव जी के पुत्र थे, इन को को जुणसी जी, जुणसी, जानसी, जुणसी देव जी, जसीदेव आदि कई नामों से पुकारा जाता था, आमेर के 13 वें शासक राजा जुणसी देव के चार पुत्र थे -:
01 - बधावा जी
02 - हमीर जी (हम्मीर देव जी)
03 - नापा जी
04 - मेहपा जी
05 - सरवन जी
06 - ट्यूनगया जी
07 - सूजा जी
08 - भडासी जी
09 - जीतमल जी
10 - खींवराज जी
11 - जोणसी
02 - हमीर जी (हम्मीर देव जी)
03 - नापा जी
04 - मेहपा जी
05 - सरवन जी
06 - ट्यूनगया जी
07 - सूजा जी
08 - भडासी जी
09 - जीतमल जी
10 - खींवराज जी
11 - जोणसी
01 - जसकरण जी
02 - उदयकरण जी
03 - कुम्भा जी
04 - सिंघा जी
24 - उदयकरण जी - राजा जुणसी जी के दूसरे पुत्र थे।25 - राजा बरसिँह जी - उदयकरण जी के पुत्र थे।
26 - राजा मेराज जी (मेहराज) - राजा बरसिँह जी के पुत्र थे।
27 - नरु जी - राजा मेराज जी (मेहराज) के पुत्र थे।राजा मेराज जी (मेहराज) के पुत्र नरु जी के वंशज नरुका कछवाह कहलाते हैं । मेराज जी, राजा बरसिँह जी के पुत्र व राजा उदयकरण जी के पोते थे।
peptogawas.com
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।
Thank you very much
ReplyDeleteJmd re sa hkm
ReplyDeleteसर मुझे राव नरु जी की जन्म शताबदी एंव जन्म सथान बताने का कष्ठ करे
ReplyDeleteHkm mujhe bhi sand Kare
Deletedhanyawad hukam
ReplyDeleteहुकम दासाजी की वंशावली और उनके ठिकानो सहित विवरण सहित उपलब्ध करवाये सा ।
ReplyDeleteजय माता दी हुक्मम
Deleteहुक्कम दासाजी की वंशावली मुझे भी भेजने का कष्ट करें
Sir mujhe b send kare
Deleteहुकम यह जानकारी मुझे भी उपलब्ध करवाएं...9602350600
Deleteकृपया लालाजी नरुजी के बड़े नही दूसरे नम्बर के पुत्र थे दासाजी बड़े पुत्र थे इस तथ्य को ठीक कर लें
ReplyDeleteGood work hkm
ReplyDeletePls tell me About Jitawat Vansz and History
ReplyDeletePlease share the history of lalawat Naruka
ReplyDeleteVillage-Bhutera
Rajasthan-JAIPUR
TAL-Chomu
Great work hukm sa
ReplyDeleteNice hukm
ReplyDeletehkm mujhe dasa singh ji ki pidiyo ki jankari chahiye kyo ki mai unki pidi me hi hu ,dasa ji ke putra kaha kaha gye ,ye sab jankari please
ReplyDeleteAbout me my goatr right hameerdekha kondla th. Mahwa dist. Dausa Rajasthan 9694157191 please tell me
ReplyDeleteNice hkm me Bhupendera Singh Dasawat NARUKA
ReplyDeleteरत्नावत नरुका वसावली भेजो
ReplyDelete+971502612370
Naruka vansavali bhejo
Deleteपृथ्वी सिंहोत नरुका की वंशावली बताये हो कम
DeletePratwi singot Naruka ki bansawli btae hkm
Delete9983789040
Deleteहासावत कछवाहा भी है क्या
ReplyDeleteबहुत शानदार हुकम
ReplyDeleteBest knowledge about Naruka Rajput
ReplyDeletePmTak.com
ReplyDeleteRajput History
ReplyDeleteRajput History 👈 Click to check it
ReplyDeleteHkm jai maa bhawani 🙏
ReplyDeleteDasawat naruka ki vanshawali bhejna hkm 9549975449
Lion Hindi
ReplyDeleteLion Hindi:- Rajputana News Website
ReplyDeletehttps://www.lionhindi.com