Tuesday, November 8, 2016

4 राजस्थान में कछवाहा वंश का इतिहास

 राजस्थान में कछवाहा वंश का इतिहास -:

कछवाहों की उत्पति:- इस सांसारिक जीवन में जातियाँ और मनुष्य अपने पूर्वजों के इतिहास से शिक्षा व प्रेरणा लेकर जीवन निर्वाह करते हैं एवं अपने उज्जवल भविष्य का निर्माण स्वविवेक से करते हैं।
हम कौन थे, हमारा वैभव क्या था?हमारे पूर्वज कैसे थे, हमारी संस्कृति और सभ्यता कैसी थी?उपरोक्त ज्ञान इतिहास का अध्ययन करने से प्राप्त होता है।
कछवाहा वंश इतिहास में प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी राजपूत राजवंश की एक (खाप) शाखा ।कछवाहों की (राजपूतों) इस खाप की उत्पति कहाँ से और कैसे हुई ?मान्यता की यह कुल राम के पुत्र कुश से उत्पन्न हुवा है।
कछवाह वंश अयोध्या राज्य के सूर्यवंशी राजाओ की एक शाखा है।भगवान श्री रामचन्द्र जी के ज्येष्ठ पुत्र कुश से इस वंश (शाखा) का विस्तार हुआ है ।अयोध्या राज्य पर कुशवाह वंश का शासन रहा है। अयोध्या राज्य वंश में ''इक्ष्वाकु'' दानी ''हरिशचन्द्र'',''सगर'' (इनके नाम से सगर द्वीप जहाँ गंगासागर तीर्थ स्थल है) पितृ भक्त ''भागीरथ '', गौ भक्त ''दिलीप''  ''रघु'' सम्राट ''दशरथ'', मर्यादा पुरूषोत्तम भगबान "रामचंद्र" एवं उनके ज्येष्ठ पुत्र महाराज ''कुश'' के वंशधर कुशवाहे कहलाये।

बिहार में कछवाहा वंश का इतिहास - महाराजा कुश के वंशजो की एक शाखा अयोध्या से चलकर साकेत आयी और साकेत से, बिहार मे सोन नदी के किनारे रोहिताशगढ़ (बिहार) आकर वहा रोहताशगढ किला बनाया।


मध्यप्रदेश में कछवाहा वंश का इतिहास - महाराजा कुश के वंशजो की एक शाखा फिर बिहार के रोहताशगढ से चलकर पदमावती (ग्वालियर) मध्यप्रदेश मे आये। कछवाह वंशज के एक राजकुमार तोरुमार नरवर (तोरनमार) पदमावती (ग्वालियर) मध्यप्रदेश मे आये। नरवर (ग्वालियर ) के पास का प्रदेश कच्छप प्रदेश कहलाता था। और वहा आकर कछवाह वंशज के एक राजकुमार तोरुमार ने एक नागवंशी राजा देवनाग को पराजित कर इस क्षेत्र को अपने कब्जे में किया। क्योकि यहा पर कच्छप नामक नागवंशीय क्षत्रियो की शाखा का राज्य था । (महाभारत आदि पर्व श्लोक 71) नागो का राज्य ग्वालियर के आसपास था । इन नागो की राजधानी पद्मावती थी, पदमावती राज्य पर अपना अधिकार करके सिहोनिया गाँव को अपनी सर्वप्रथम राजधानी बनायी थी । यह मध्यप्रदेश मे जिला मुरैना मे पड़ता है।
आगे चलकर यह क्षेत्र राजा नल के कारण नरवर क्षेत्र कहलाया। कुशवाह राजाओं में राजा ''नल'' सुविख्यात रहा है, जिसकी वीरगाथा ढोला गायन के मार्फत सुनते आये हैं। समाज का अतीत अत्यधिक वैभवशाली रहा है। राजा नल- दमयंती का पुत्र ढोला जिसे इतिहास में साल्ह्कुमार के नाम से भी जाना जाता है का विवाह राजस्थान के जांगलू राज्य के पूंगल नामक ठिकाने की राजकुमारी मारवणी से हुआ था जो राजस्थान के साहित्य में ढोला-मारू के नाम से प्रख्यात प्रेमगाथाओं के नायक है। इसी ढोला के पुत्र लक्ष्मण का पुत्र बज्रदामा बड़ा प्रतापी व वीर शासक हुआ जिसने ग्वालियर पर अधिकार कर एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। इसी क्षेत्र मे कछवाहो के वंशज महाराजा सूर्यसेन ने सन् 750 ई. मे ग्वालियर का किला बनवाया था।

अत: स्पष्ट है कि कछवाहो के पूर्वजो ने आकर कच्छपो से युद्द कर उन्हे हराया और इस क्षेत्र को अपने कब्जे में किया । इसी कारण ये कच्छप, कच्छपघात या कच्छपहा कहलाने लगे और यही शब्द बिगडकर आगे चलकर कछवाह कहलाने लगा । यहां वर्षो तक कुशवाह का शासन रहा।

नरवर (ग्वालियर) राज्य के राजा ईशदेव जी थे और राजा ईशदेव जी के पुत्र सोढदेव के पुत्र, दुल्हराय जी नरवर (ग्वालियर) राज्य के अंतिम राजा थे।


राजस्थान में कछवाहा वंका इतिहास -:
कछवाहा वंश राजस्थानी इतिहास के मंच पर बारहवीं सदी से दिखाई देता है। सोढदेव जी काबेटा दुल्हराय जी जिसका विवाह राजस्थान में मोरागढ़ के शासक रालण सिंह चौहान की पुत्रीसे हुआ था। रालण सिंह चौहान के राज्य के पड़ौसी दौसा के बड़गुजर राजपूतों ने मोरागढ़ राज्य के करीब पचास गांव दबा लिए थे। अत: उन्हें मुक्त कराने के लिए रालण सिंह चौहान ने दुल्हेराय को सहायतार्थ बुलाया और दोनों की संयुक्त सेना ने दौसा पर आक्रमण कर बड़गुजर शासकों को मार भगाया। दौसा विजय के बाद दौसा का राज्य दुल्हेराय के पास रहा दौसा का राज्य मिलने के बाद दुल्हेराय ने अपने पिता सोढदेव को नरवर से दौसा बुला लिया और अपने पितासोढदेव जी को विधिवत दौसा का राज्याभिषेक कर दिया गया। इस प्रकार राजस्थान में दुल्हेराय जी ने सर्वप्रथम दौसा में कछवाह राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी सर्वप्रथम दौसा स्थापित की। राजस्थान में कछवाह साम्राज्य की नींव डालने के बाद दुल्हेराय जी ने भांडारेज, मांच, गेटोर, झोटवाड़ा आदि स्थान जीत कर अपने राज्य का विस्तार किया।

दौसा से इन्होने ढूढाड क्षेत्र में मॉच गॉव पर अपना अधिकार किया जहॉ पर मीणा जाति का कब्जा था, मॉच (मॉची) गॉव के पास ही कछवाह राजवंश के राजा दुलहराय जी ने अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी का मंदिर बनबाया । कछवाह राजवंश के राजा दुलहराय जी ने अपने ईष्टदेव भगवान श्री रामचन्द्र जी तथा अपनी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी के नाम पर उस मॉच (मॉची) गॉव का नाम बदल कर जमवारामगढ रखा।

इस वंश के प्रारम्भिक शासकों में दुल्हराय बडे़ प्रभावशाली थे, जिन्होंने दौसा, रामगढ़, खोह, झोटवाड़ा, गेटोर तथा आमेर को अपने राज्य में सम्मिलित किया था। सोढदेव की मृत्यु व दुल्हेराय के गद्दी पर बैठने की तिथि माघ शुक्ला 7 वि.संवत 1154 है I ज्यादातर इतिहासकार दुल्हेराय जी का राजस्थान में शासन काल वि.संवत1154 से 1184 के मध्य मानते है I
क्षत्रियों के प्रसिद्ध 36 राजवंशों में कछवाहा वंश के कश्मीर, राजपुताने (राजस्थान) में अलवर, जयपुर, मध्यप्रदेश में ग्वालियर, राज्य थे। मईहार, अमेठी, दार्कोटी आदि इनके अलावा राज्य, उडीसा मे मोरमंज, ढेकनाल, नीलगिरी, बऊद और महिया राज्य कछवाहो के थे। कई राज्य और एक गांव से लेकर पाँच-पाँच सौ ग्राम समुह तक के ठिकानें , जागीरे और जमींदारीयां थी राजपूताने में कछवाहो की 12 कोटडीया और 53 तडे प्रसिद्ध थी I
आमेर के बाद कछवाहो ने जयपुर शहर बसाया, जयपुर शहर से 7किमी. की दूरी पर कछवाहो का किला आमेरबना है और जयपुर शहर से 32 कि.मी. की दूरी पर ऑधी जाने वाली रोड पर जमवारामगढ है।जमवारामगढ से 5 किमी की दूरी पर कछवाहोकी कुलदेवी श्री जमवाय माता जी का मंदिर बना है । इस मंदिर के अंदर तीन मूर्तियॉ विराजमान है, पहली मूर्ति गाय के बछडे के रूप मेंविराजमान है, दूसरी मूर्ति श्री जमवाय माता जी की है, और तीसरी मूर्ति बुडवाय माता जी की है।श्री जमवाय माता जी के बारे में कहा गया है,कि ये सतयुग में मंगलाय, त्रेता में हडवाय, द्वापर में बुडवाय तथा कलियुग में जमवाय माता जी के नाम से देवी की पूजा - अर्चना होतीआ रही है।

धरती आ ढुंढ़ाड़ री, दिल्ली हन्दी ढाल।
भुजबल इण रै आसरै,नित नित देस निहाल ।।
भावार्थ - ढुंढ़ाड़ (जयपुर,आमेर राज्य) की यह धरती सदा दिल्ली की रक्षक रही है। इसके बल के भरोसे ही देश हमेशा कृतार्थ व सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त रहा है।


स्वाभिमानी कुशवाह क्षत्रिय ने अपने मूल राज्य आमेर व निकट क्षेत्रों से उजड़कर जाजऊपार्वती नदी (उत्तरप्रदेश) राजस्थान सीमा के पास किला बनाकर (वर्तमान जाजऊ की सराय) कुशवाह क्षत्रिय का पुन: एक और समानान्तर राज्य सिथापित किया था। साथ ही साथ वाड़ी व निदारा (धौलपुर) में मिट्टी के बुर्जदार किले रक्षा हेतु बनाए। परन्तु मुगल सेना ने पुन: स्थापित राज्य से सत्ताविहीन कर दिये जाने पर स्वाभिमानी कछवाह राजपूतों ने, पुन: राज्य स्थापित करने का मानस बदलकर निकट व दूर (वर्तमान राजस्थान, उ.प्र., म.प्र, व बिहार प्राप्त) अपना नया ठिकाना बनाया। कछवाह परिवारों का सन्तोष के साथ भरण पोषण करने लगे, परन्तु जो समाज पहले से ही निवास कर रहा था, उनके पास पर्याप्त जमीन थी। पीढ़ी दर पीढ़ी समाज, गरीबी व अशिक्षा से ग्रसित होता गया। मुगलों से बचाव हेतु अपने को राजपूत कहना त्याग दिया। कुशवाहों की बस्तियों व गाँवों में जागा भाट समय समय पर आते रहते हैं और उपरोक्त वंशावली अपनी पोथी से बयान करते हैं। जागा भाट एवं इतिहासकार समाज का निकास, तत्कालीन राज्य आमेर, ग्वालियर एवं अयोध्या राज्य से बतलातेआरहे हैं।
हमारे बुजर्ग हमेशा से क्षत्रित्व भावना को पीढ़ी दर पीढ़ी बतलाते रहे हैं कि हमारी जाति कुशवाह क्षत्रिय है।और उनमें अपने गौरवशाली वंश प्रतिष्ठा का अहसास हमेशा बना रहा है।
वर्तमान में मध्य प्रदेश के ग्वालियर, नरवरगढ़ एवं जाजऊ किलों के निकट व अन्य दूर क्षेत्रों में आज भी सूर्यवंशीं कुशवाह क्षत्रिय समाज की घनी आबादी है। राजस्थान के तत्कालीन आमेर राज्य में (वर्तमान दौसा, अलवर, सवार्इमाधोपुर, जयपुर व टोंक जिलो के क्षेत्र) कुशवाह की विशेष बहुलता थी। स्वाभिमानी कछवाहों के उजड़ने के बाद जातीय समीकरण बिगड़ गया, पुन: मीणा जाति का जनाधार वाला क्षेत्र हो गया, इस भय के कारण राजा मानसिंह ने जातीय समीकरण उचित रखने के लिए हरियाणा राज्य से, किसी खेतीहर जाति को आर्थिक, जमीन एवं मकान से सहायता कर विस्थापित किया, और जातीय समीकरण उचित करने का प्रयास किया, परन्तु कछवाह क्षत्रिय की जनसंख्या फिर भी कम ही रही। यह समाज अपने को हरियाणा ब्राह्मण कहता है एवं जयपुर राज-परिवार के स्वामिभक्त होने के साथ-साथ राज-परिवार का गुणगान भी करता है।
दुल्हेराय जी के वंशज जो राजस्थान में कछवाह वंश की उपशाखाओं यथा - राजावत, शेखावत, नरूका, नाथावत, खंगारोत आदि नामों से जाने जाते है आज भी जन्म व विवाह के बाद जमवाय माता जी के जात (मत्था टेकने जाते है) लगाते है I राजस्थान में दौसा के आप-पास बड़गुजर राजपूतों व मीणा शासकों पतन कर उनके राज्य जीतने के बाद दुल्हेराय जी ग्वालियर की सहायतार्थ युद्ध में गए थे जिसे जीतने के बाद वे गंभीर रूप से घायलावस्था में वापस आये और उन्ही घावों की वजह से माघ सुदी 7 वि.संवत 1112, 28 जनवरी 1135 ई. को उनका निधन हो गया और उनके पुत्र कांकलदेव खोह की गद्दी पर बैठे जिन्होंने आमेर के मीणा शासक को हराकर आमेर पर अधिकार कर अपनी राजधानी बनाया जो भारत की आजादी तक उनके वंशज के अधिकार में रहा I
कछवाहों की खापें निम्न है:-
देलणोत, झामावत, घेलणोत, राल्णोत, जीवलपोता, आलणोत (जोगी कछवाहा), प्रधान कछवाहा, सावंतपोता, खीवाँवात, बिकसीपोता, पीलावत,भोजराजपोता (राधर का,बीकापोता ,गढ़ के कछवाहा,सावतसीपोता) , सोमेश्वरपोता, खींवराज पोता, दशरथपोता, बधवाड़ा, जसरापोता, हम्मीरदे का, भाखरोत, सरवनपोता, नपावत,तुग्या कछवाहा, सुजावत कछवाहा, मेहपाणी, उग्रावत, सीधादे कछवाहा, कुंभाणी, बनवीरपोता, हरजी का कछवाहा, वीरमपोता, मेंगलपोता, कुंभावत, भीमपोता या नरवर के कछवाहा, पिचयानोत, खंगारोत, सुल्तानोत, चतुर्भुज, बलभद्रपोत, प्रताप पोता, नाथावत, बाघावत, देवकरणोत, कल्याणोत, रामसिंहहोत, साईंदासोत, रूप सिंहसोत, पूर्णमलोत, बाकावत, राजावत, जगन्नाथोत, सल्देहीपोता, सादुलपोता, सुंदरदासोत, नरुका, मेलका, शेखावत, करणावत, मोकावत, भिलावत, जितावत, बिझाणी, सांगणी, शिवब्रह्मपोता, पीथलपोता, पातलपोता।
कछवाहों की उपरोक्त खाँपों के आलावा भी समय - कल में बहुतसी अनेक शाखाएँ और उपशाखाएँ हुई है .......
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[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]


।।इति।।

6 comments:

  1. Pep singh rathore ji kachwaha bansabali ki jankari dene ke dhanyabad aapne kachwaho ka rajesthan se palayan ka karan mughle -sena likha lekin oos samay muglo ka senapati to amer ka kachwaha raja maan singh tha esi kya baat ho gai thi jo kachwaho ka dusman kachwaha hi ho gaya tha krapa history ko khul-kar likhe RAM-RAM SA

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  4. शाक्य सैनी मौर्या इनका कुशवाह से क्या संबंध है.

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