राजपुताना इतिहास – कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत वंश का इतिहास
कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत वंश का क्रमबद्द इतिहास लिखने से पहले मैं माँ भवानी के चरणों मेँ नमन करता हूँ। कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत वंश का इतिहास लिखने के साथ-साथ मै आपको नरवर व उससे भी पहले के इतिहास के बारे में भी मेरी इस ब्लॉग साइट में विस्तार से बताने का प्रयास करूँगा। नरवर से इस कछवाहा (कछवाह) वंश के वट वृक्ष कि शाखाएँ प्रफुलित होकर सर्वत्र फैली है। जो कछवाहा (कछवाह) वंश का इतिहास समझने से पहले बहुत जरुरी है। क्योँकि आज कल कुछ अवसरवादी व हल्कि सोच के गैर राजपूत लोग दूसरो का इतिहास चुराकर तोड़मरोड़कर पेश कर रहे हैं। वे लोग उसमे अपने वंशजो के नाम जोङकर राजपूत वंश के हमारे पूर्वजो को अपने पूर्वज बताकर अपनी जाती या खाँप को उच्च एँव महान साबित करने की सोची समझी चाल के तहत हमारा इतिहास मिटाने कि कोशिस कर रहे हैं।मगर सच तो यह हैकि आज हमारी युवा पीढ़ी जो अक्सर अपना और अपनें पूर्वज वंसजों का जातिगत इतिहास केवल बाज़ारू किताबों और इन्टरनेट पर दी गयी जानकारी की सहायता से कुछ ही जानकारियां ढूंढकर, उन्हें पढ़कर पूर्णरूप से संतुष्ट नहीं हो सकती! जिसका मुख्य कारण यह है कि आधी अधूरी जानकारी का होना या फिर तथ्यों को तोड़मरोड़कर गलत और मनगढ़त बातें लिखी हुयी मिलाना,यह बात सभी जानतें हैं की एक जाती से दूसरी जाती और उससे फिर एक नयी जाती इस प्रकार लगभग सभी जातियां क्षेत्रीय वंस से ही निकली हुई है।
मगर उन अवसरवादी व हल्कि सोच से हमें कोई बराबरी नहीं करनी क्योकिं हमारी सम्पूर्ण राजपूत जाती का इतिहास क्रमागत और पीढ़ीगत है, जिसमे अन्य जातियों का भी इतिहास भी समाया हुवा है, जो हमारे पूर्वजों द्धारा अपने खून से लिखित, अपने शोर्ये और बलिदान से सिंचित है, इसलिए हमारा इतिहास अमिट है और आज भी प्रफुलित है। हमें दूसरों के लिखित मिथ्या कल्पनाकोश पर ध्यान न देकर सिर्फ अपने इतिहास के बिखरे मोतियों को पुनःएक धागे में पिरोकर (जोड़कर) फिर एक माला का निर्माण करना है।
*जय माँ भवानी*
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,
जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,
जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
हमें कछवाहा (कछवाह) क्षत्रिय राजपूत राजवंश के प्राचीन इतिहास को अच्छी तरह से समझने के लिए इतिहास की गहराई में जाना होगा, जिसमें मुख्यतःइतिहास को हम सुविधा के लिये चार खण्डों में बांटकर कर अध्यन करेंगे।
01 - ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर, ब्रह्मा जी 59 पुत्रों का इतिहास।
02 - ब्रह्माजी से लेकर भगवान श्री राम तक का इतिहास।
03 - भगवान श्री राम से लेकर, दुल्हराय तक का इतिहास।
04 - राजस्थान में कछवाहा वंश का इतिहास
1 - ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर, ब्रह्मा जी 59 पुत्रों का इतिहास -: दो शब्द - हमें सबसे पहले मानव और उस मानव का अनेक जातियों में कैसे विभाजन हुवा इसका पूरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महेश (शिव) से लेकर मानव जाती की उत्पति का भी ज्ञान प्राप्त करना होगा ताकि जिससे की इतिहास को समझनें में आसानी रहेगी ।
क्योकिं ब्रह्मा की संतानों से ही मानव जाती का विकास हुवा है, जिसमें सूर्यवंश का निकास ब्रह्मा के सत्रह मानस पुत्र पुत्रों में से सातवें पुत्र वैवस्वत मनु से हुवा है। सूर्यवंश वंश राजा इक्ष्वाकु से शु्रू हुआ। भागवत के अनुसार सूर्यवंश के आदिपुरुष इक्ष्वाकु थे। इसीलिए सूर्य वंश को इक्ष्वाकु वंश भी कहा जाता है। मनु ने ही अयोध्या को बसाया था। इससे पहले कश्यप थे। कश्यप के पुत्र सूर्य और सूर्य के पुत्र के पुत्र वैवश्वत मनु हुए। इन्हीं वैवश्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु थे। यानि वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु और उसके तीन पुत्रों विकुक्षि, निमि और दण्डक से सूर्यवंश आगे बढ़ा जिसमें अनेक महान राजपुरुषों का जन्म हुवा और समय कल में उन राजपुरुषों के वंसजों से अनेक जातियों का क्रमबद विकास हुवा जिसमें सूर्यवंश के अंतर्गत मुख्य रूप से सूर्य वंश की दस शाखायें चली -:
01 - राजपूत - सूर्य वंश - कछवाह
02 - राजपूत - सूर्य वंश - राठौर (राठौड़)
03 - राजपूत - सूर्य वंश - बडगूजर (राघव)
04 - राजपूत - सूर्य वंश - सिकरवार
05 - राजपूत - सूर्य वंश - सिसोदिया
06 - राजपूत - सूर्य वंश - गहलोत
07 - राजपूत - सूर्य वंश - गौर (गौड,गौड़)
08 - राजपूत - सूर्य वंश - गहलबार (गेहरवार)
09 - राजपूत - सूर्य वंश - रेकबार (रैकवार)
10 - राजपूत - सूर्य वंश – जुनने
इन दस मुख्य शाखाओं के बाद अनेक उप शाखाएं भी हुई जो आज इस रूप में देख सकतें हैं जैसे-:
सूर्यवंश का वंश वृक्ष
|
||
सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ (सूर्यवंश का वंश वृक्ष)
|
||
01 गहलौत
क्षत्रिय
|
23 पहाड़ी
सूर्यवंशी क्षत्रिय
|
45 बम्बवार
क्षत्रिय
|
02 कछवाहा
क्षत्रिय
|
24 सिंधेल
क्षत्रिय
|
46 चोलवंशी
क्षत्रिय
|
03 राठौर (राठौड़)
|
25 लोहथम्भ
क्षत्रिय
|
47 पुंडीर
क्षत्रिय
|
04 निकुम्म
क्षत्रिय
|
26 धाकर
क्षत्रिय
|
48 कुलूवास
क्षत्रिय
|
05 श्री
नेत क्षत्रिय
|
27 उदमियता
क्षत्रिय
|
49 किनवार
क्षत्रिय
|
06 नागवंशी
क्षत्रिय
|
28 काकतीय
क्षत्रिय
|
50 कंडवार
क्षत्रिय
|
07 बैस
क्षत्रिय
|
29 सूरवार
क्षत्रिय
|
51 रावत
क्षत्रिय
|
08 विसेन
क्षत्रिय
|
30 नेवतनी
क्षत्रिय
|
52 नन्दबक
क्षत्रिय
|
09 गौतम
क्षत्रिय
|
31 मौर्य
क्षत्रिय
|
53 निशान
क्षत्रिय
|
10 बडगूजर
क्षत्रिय
|
32 शुंग
वंशी क्षत्रिय
|
54 जायस
क्षत्रिय
|
11 गौड
क्षत्रिय
|
33 कटहरिया
क्षत्रिय
|
55 चंदौसिया
क्षत्रिय
|
12 नरौनी
क्षत्रिय
|
34 अमेठिया
क्षत्रिय
|
56 मौनस
क्षत्रिय
|
13 रैकवार
क्षत्रिय
|
35 कछलियां
क्षत्रिय
|
57 दोनवार
क्षत्रिय
|
14 सिकरवार
क्षत्रिय
|
36 कुशभवनियां
क्षत्रिय
|
58 निमुडी
क्षत्रिय
|
15 दुर्गवंश
क्षत्रिय
|
37 मडियार
क्षत्रिय
|
59 झोतियाना
क्षत्रिय
|
16 दीक्षित
क्षत्रिय
|
38 कैलवाड
क्षत्रिय
|
60 ठकुराई
क्षत्रिय
|
17 कानन
क्षत्रिय
|
39 अन्टैया
क्षत्रिय
|
61 मराठा
या भोंसला क्षत्रिय
|
18 गोहिल
क्षत्रिय
|
40 भतिहाल
क्षत्रिय
|
62 परमार
क्षत्रिय
|
19 निमी
वंशीय क्षत्रिय
|
41 महथान
क्षत्रिय
|
63 चौहान
क्षत्रिय
|
20 लिच्छवी
क्षत्रिय
|
42 चमिपाल
क्षत्रिय
|
|
21 गर्गवंशी
क्षत्रिय
|
43 सिहोगिया
क्षत्रिय
|
|
22 दघुवंशी
क्षत्रिय
|
44 बमटेला
क्षत्रिय
|
सूर्यवंश की शाखाएँ एवं उपशाखाएँ (सूर्यवंश का वंश वृक्ष)
1. सूर्यवंशी 2. निमि वंश 3.निकुम्भ वंश 4. नाग वंश 5. गोहिल वंश, 6. गहलोत वंश 7. राठौड वंश 8. गौतम वंश 9. मौर्य वंश 10. परमार वंश, 11. चावड़ा वंश 12. डोड वंश 13. कुशवाहा वंश 14. परिहार वंश 15. बड़गूजर वंश, 16. सिकरवार 17. गौड़ वंश 18. चैहान वंश 19. बैस वंश 20. दाहिमा वंश, 21. दाहिया वंश 22. दीक्षित वंश।परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का स्रष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुडी हुई है। परमेश्वर के तीन (त्रिमूर्ति) मुख्य रूप हैं।
01 - ब्रह्मा
02 – विष्णु
03 - शिव
पुराणों में त्रिमूर्ति के भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान शिव और ब्रह्मा को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है।
03 - शिव
पुराणों में त्रिमूर्ति के भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो भगवान शिव और ब्रह्मा को माना जाता है। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है।
विष्णु - विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन सांप के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित है।
शिव - शिव को देवों के देव कहते हैं, इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है | हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है।
शिव - शिव को देवों के देव कहते हैं, इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है | हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है।
शिव के पुत्र कार्तिकेय और गणेश दो हैं तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। अशोक सुंदरी का विवाह नहूष से हुआ था। तथा अशोक सुंदरी ययाति जैसे वीर पुत्र तथा सौ रूपवती कन्याओं की माता बनीं। इंद्र के अभाव में नहूष को ही आस्थायी रूप से इंद्र बनाया गया, उसके घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा इसीसे उसका पतन हुआ। बादमें इंद्र नें अपनी गद्दी पुन: ग्रहण की।
ब्रह्मा जी ने अपने मानसिक संकल्प से दस प्रजापतियों को उत्पन्न करके उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा और सृष्टि की रचना है। इसलिये ब्रह्मा जी प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न 17 मानस पुत्रों में से ये दस मुख्य प्रजापति कहे जाते हैं उनका विवरण इस प्रकार हैं :-
01 - मरीचि - मन से मारिचि
02 – अत्रि - नेत्र से अत्रि
03 – अंगिरा - मुख से अंगिरस
04 - पुलस्त्य - कान से पुलस्त्य
05 - पुलह - नाभि से पुलह
06 – क्रतु (यज्ञ) - हाथ से कृतु
ब्रह्मा जी ने अपने मानसिक संकल्प से दस प्रजापतियों को उत्पन्न करके उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा और सृष्टि की रचना है। इसलिये ब्रह्मा जी प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न 17 मानस पुत्रों में से ये दस मुख्य प्रजापति कहे जाते हैं उनका विवरण इस प्रकार हैं :-
01 - मरीचि - मन से मारिचि
02 – अत्रि - नेत्र से अत्रि
03 – अंगिरा - मुख से अंगिरस
04 - पुलस्त्य - कान से पुलस्त्य
05 - पुलह - नाभि से पुलह
06 – क्रतु (यज्ञ) - हाथ से कृतु
07 – भृगु - त्वचा से भृगु
08 - वसिष्ठ
09 - दक्ष - अंगुष्ठ से दक्ष
10 – कर्दम - छाया से कंदर्भ
08 - वसिष्ठ
09 - दक्ष - अंगुष्ठ से दक्ष
10 – कर्दम - छाया से कंदर्भ
ब्रह्मा के प्रमुख 17 मानस पुत्र :-
11 - गोद से नारद
12 - सनक
13 - सनन्दन
14 - सनातन
15 – सनतकुमार - इच्छा से चार पुत्र – 01 - सनक, 02 - सनन्दन, 03 - सनातन 04 - सनतकुमार, - ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया। उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे। इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्धनारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम 'का' और स्त्री का नाम 'या' रखा। प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया।
16 - शरीर से - स्वायंभुव मनु तथा शतरुपा
17 - ध्यान से चित्रगुप्त।
मरीचि के पुत्र हुए - कश्यप
अंगिरा के पुत्र हुए - बृहस्पति, उतथ्य और संवर्त।
पुलस्त्य के पुत्र हुए - राक्षस, बानर, किन्नर तथा यक्ष हैं।
पुलह के पुत्र हुए - शरभ, सिंह, किम्पुरूष, व्याघ्र, रीछ और ईहामृग (भेडि़या)।
क्रतु (यज्ञ) - भगवान सूर्य के आगे चलने वाले साठ हजार वालखिल्य ऋषि हुए।
ब्रह्मा जी के पुत्र - ब्रह्मा जी के पुत्रों की संख्या पुराणों में निश्चित नहीं है। ब्रह्मा जी के कुल मिलाकर कुल 59 पुत्र बताये गये हैं, जिनको हम अध्ययन व यादास्त के लिए पांच भागो में श्रेणीवार इस प्रकार जानेंगे, उनका विवरण इस प्रकार हैं :-
01 - सत्रह मानस पुत्र
02 - चौदह मनु
03 - ग्यारह रुद्र
04 - आठ वसु
05 - ब्रह्मा जी के अन्य पुत्र
{*** चार कुमार (सनतकुमार) – ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में सामिल [01 - सनक 02 - सनन्दन 03 - सनातन 04 - सनतकुमार ये चार पुत्र चार कुमार कहलाते हैं*** ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया। उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे। इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्धनारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम 'का' और स्त्री का नाम 'या' रखा। प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। }
{*** छः महर्षि - के मानस पुत्रों में सामिल [01 - मरीचि 02 - अंगिरा, 03 - अत्रि 04 - पुलत्स्य
05- पुलह 06 – क्रतु ] ये छः महर्षि कहलाते हैं***}
भगवान् रुद्र भी ब्रह्मा जी के ललाट से उत्पन्न हुए।
02 – अत्रि
03 – अंगिरा
04 - पुलस्त्य
05 - पुलह
06 – क्रतु (यज्ञ)
07 – भृगु
08 - वसिष्ठ
09 - दक्ष
10 – कर्दम
11 - नारद
12 - सनक
13 - सनन्दन
14 - सनातन
15 – इच्छा
11 - गोद से नारद
12 - सनक
13 - सनन्दन
14 - सनातन
15 – सनतकुमार - इच्छा से चार पुत्र – 01 - सनक, 02 - सनन्दन, 03 - सनातन 04 - सनतकुमार, - ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया। उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे। इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्धनारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम 'का' और स्त्री का नाम 'या' रखा। प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया।
16 - शरीर से - स्वायंभुव मनु तथा शतरुपा
17 - ध्यान से चित्रगुप्त।
मरीचि के पुत्र हुए - कश्यप
अंगिरा के पुत्र हुए - बृहस्पति, उतथ्य और संवर्त।
पुलस्त्य के पुत्र हुए - राक्षस, बानर, किन्नर तथा यक्ष हैं।
पुलह के पुत्र हुए - शरभ, सिंह, किम्पुरूष, व्याघ्र, रीछ और ईहामृग (भेडि़या)।
क्रतु (यज्ञ) - भगवान सूर्य के आगे चलने वाले साठ हजार वालखिल्य ऋषि हुए।
ब्रह्मा जी के पुत्र - ब्रह्मा जी के पुत्रों की संख्या पुराणों में निश्चित नहीं है। ब्रह्मा जी के कुल मिलाकर कुल 59 पुत्र बताये गये हैं, जिनको हम अध्ययन व यादास्त के लिए पांच भागो में श्रेणीवार इस प्रकार जानेंगे, उनका विवरण इस प्रकार हैं :-
01 - सत्रह मानस पुत्र
02 - चौदह मनु
03 - ग्यारह रुद्र
04 - आठ वसु
05 - ब्रह्मा जी के अन्य पुत्र
{*** चार कुमार (सनतकुमार) – ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में सामिल [01 - सनक 02 - सनन्दन 03 - सनातन 04 - सनतकुमार ये चार पुत्र चार कुमार कहलाते हैं*** ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया। उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे। इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्धनारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम 'का' और स्त्री का नाम 'या' रखा। प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। }
{*** छः महर्षि - के मानस पुत्रों में सामिल [01 - मरीचि 02 - अंगिरा, 03 - अत्रि 04 - पुलत्स्य
05- पुलह 06 – क्रतु ] ये छः महर्षि कहलाते हैं***}
भगवान् रुद्र भी ब्रह्मा जी के ललाट से उत्पन्न हुए।
01 - सत्रह मानस पुत्र –:
ब्रह्मा जी 59 पुत्रों में सामिल मानस पुत्रों की कुल संख्या सत्रह थी, ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न इन सत्रह मानस पुत्रों में से ये दस पुत्रों को मुख्य प्रजापति कहाजाता है, मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- के ये दस पुत्र मुख्य प्रजापति हैं। इन सत्रह मानस पुत्रों के नाम ईस प्रकार है -:
01 - मरीचि02 – अत्रि
03 – अंगिरा
04 - पुलस्त्य
05 - पुलह
06 – क्रतु (यज्ञ)
07 – भृगु
08 - वसिष्ठ
09 - दक्ष
10 – कर्दम
11 - नारद
12 - सनक
13 - सनन्दन
14 - सनातन
15 – इच्छा
16 - स्वायंभुव मनु तथा शतरुपा
17 - चित्रगुप्त
02 - स्वरोचिष मनु
03 - औत्तमी मनु
04 - तामस मनु
05 - रैवत मनु
06 - चाक्षुष मनु
07 - वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु
08 - सावर्णि मनु
09 - दक्ष सावर्णि मनु
10 - ब्रह्म सावर्णि मनु
11 - धर्म सावर्णि मनु
12 - रुद्र सावर्णि मनु
13 - देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु
14 - इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु
02 - सर्प
03 - महायशस्वी निर्ऋृति
04 - अजैकपाद
05 - अहिर्बुघ्न्य
06 - शत्रुसंतापन पिनाकी
07 - दहन
08 - ईश्वर
09 - परम कान्तिमान् कपाली
10 - स्थाणु
11- भगवान भव
02 - ध्रुव
03 - सोम
04 - अह
05 - अनिल
06 - अनल
07 - प्रत्यूष
08 – प्रभास
5 - ब्रह्मा जी के अन्य पुत्र – ब्रह्मा जी 59 पुत्रों में सामिल अन्य पुत्रों की कुल संख्या नौ थी, इन नौ पुत्रों के नाम ईस प्रकार है -:
01 - अधर्म
17 - चित्रगुप्त
02 - चौदह मनु - ब्रह्मा जी 59 पुत्रों में सामिल मनु पुत्रों की कुल संख्या चौदह थी, इन चौदह मनुओं के नाम ईस प्रकार है -:
01 - स्वायम्भु मनु02 - स्वरोचिष मनु
03 - औत्तमी मनु
04 - तामस मनु
05 - रैवत मनु
06 - चाक्षुष मनु
07 - वैवस्वत मनु या श्राद्धदेव मनु
08 - सावर्णि मनु
09 - दक्ष सावर्णि मनु
10 - ब्रह्म सावर्णि मनु
11 - धर्म सावर्णि मनु
12 - रुद्र सावर्णि मनु
13 - देव सावर्णि मनु या रौच्य मनु
14 - इन्द्र सावर्णि मनु या भौत मनु
3 - ग्यारह रुद्र - ब्रह्मा जी 59 पुत्रों में सामिल रुद्र पुत्रों की कुल संख्या ग्यारह थी, इन ग्यारह रुद्र पुत्रों के नाम ईस प्रकार है -:
01 - मृगव्याध02 - सर्प
03 - महायशस्वी निर्ऋृति
04 - अजैकपाद
05 - अहिर्बुघ्न्य
06 - शत्रुसंतापन पिनाकी
07 - दहन
08 - ईश्वर
09 - परम कान्तिमान् कपाली
10 - स्थाणु
11- भगवान भव
4 - वसु - ब्रह्मा जी 59 पुत्रों में सामिल वसु पुत्रों की कुल संख्या आठ थी, इन आठ वसु पुत्रों के नाम ईस प्रकार है -:
01 - धर02 - ध्रुव
03 - सोम
04 - अह
05 - अनिल
06 - अनल
07 - प्रत्यूष
08 – प्रभास
5 - ब्रह्मा जी के अन्य पुत्र – ब्रह्मा जी 59 पुत्रों में सामिल अन्य पुत्रों की कुल संख्या नौ थी, इन नौ पुत्रों के नाम ईस प्रकार है -:
01 - अधर्म
02 - अलक्ष्मी
03 - रुचि
04 - पंचशिखा
05 - वोढु
06 - अपान्तरतमा
07 - प्रचेता
08 - हंस
09 - यति
[लेखक एवं संकलन कर्ता - पेपसिंह राठौड़ तोगावास
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
03 - रुचि
04 - पंचशिखा
05 - वोढु
06 - अपान्तरतमा
07 - प्रचेता
08 - हंस
09 - यति
Home
peptogawas.com
गाँवपोस्ट - तोगावास, तहसील – तारानगर,जिला - चुरू, (राजस्थान) पिन - 331304 ]
।।इति।।
Where is raghuwanshi.god ram Chandra bhagwan...rghukul riti sda chli aayi pran Jaye pr vachan na jayi
ReplyDeletejai Rajputana
ReplyDeleteसूर्यवंश की शाखाओं में चौहान को जोड़ना गलत है। जब वे अग्नि वंशी है।कृपया सुधार कर।
ReplyDeleteAgnivansh ki kahaani baad me banavati lagti hai. Parihar Rajputs apni ancestory Lakshaman ji se maante hain jo khud Suryavanshi the. Toh Parihar rajputs ko Agnivansh me kyu rakha jaata?
Deleteक्या रघुवंशी सुर्यवंश की शाखा नहीं है जो भारत के विभीन्न स्थानों में आज भी वर्तमान है। अभी आप को सुर्य वंश राजपुतों का इतिहास जानने के लिये मेहनत करने की जरुरत है
ReplyDeleteक्या रघुवंशी सुर्यवंश की शाखा नहीं है। जो भारत के विभीन्न स्थानों में आज भी वर्तमान है। अभी आप को सुर्य वंश का इतिहास जानने के लिए मेहनत करने की जरुरत है।
ReplyDeleteकाछी कुशवाह का इतिहास बताये
ReplyDelete